२०८
समाधानः- आबालगोपाल सबको अनुभूतिस्वरूप आत्मा हो रहा है। वह पहिचानता नहीं है।
मुमुक्षुः- अन्यथा अध्यवसित होता है। हो रहा है, जिस स्वरूपमें है उस रूप। लेकिन अध्यासित अन्यथा करता है। एकत्व स्पष्ट प्रकाशमान होने पर भी कषायचक्रके साथ एकमेक करके अन्यथा... चौथी गाथा। आबालगोपाल सबको एकत्वरूप जो है उस रूप... सम्यग्ज्ञान है लेकिन दर्शन मिथ्या है। अनुभूतिस्वरूप भगवान आत्मा अनुभूयमानेति, ग्राह्यमानेति नहीं है।
मुमुक्षुः- भावार्थमें ज्ञानका अर्थ लिया है। मुमुक्षुः- ले सकते हैं। अनुभूतिस्वरूप भगवान आत्मा। दूसरा लो, पारिणामिकभावस्वरूप भगवान आत्मा, वह भी अनुभूतिके अर्थमें ले सकते हैं। अथवा अनुभूति अर्थात ज्ञानस्वरूप भगवान आत्मा, ऐसा ज्ञानस्वरूप भगवान आत्मा अनुभूयमानः वेदनमें आ रहा है, उस स्वरूपमें, तो भी वह जानता नहीं है। अनुभूतिमें ले सकते हैं। वह अनुभूति अर्थात ज्ञान-ज्ञान कहा, अनुभूतिस्वरूप भगवान आत्मा। ज्ञान.. ज्ञान.. ज्ञानस्वरूप भगवान आत्मा स्वयं अनुभूयमाने। वह स्वरूप उसे वेदनमें आ रहा है कि मैं तो ज्ञान.. ज्ञान.. ज्ञान हूँ। फिर भी जानता नहीं। उस अनुभूयमानमें जानना नहीं ले सकते।
मुमुक्षुः- माननेमें जानना नहीं ले सकते। मुमुक्षुः- अनुभूतिस्वरूपमें ले सकते हैं। उसमें लिया है न? षटकारकरूप। ७३ गाथा।
मुमुक्षुः- वहाँ पारिणामिक लिया है। वहाँ स्पष्ट ... मुमुक्षुः- अथवा ज्ञानस्वरूपसे ध्रुव, ज्ञानस्वरूपसे ध्रुव लो। ज्ञान लें तो। और ज्ञान न लें तो पारिणामिकस्वरूप।
मुमुक्षुः- अनुभवमें आ रहा है उसका आपने अर्थ किया न कि वेदनमें आ रहा है।
मुमुक्षुः- हाँ, वेदनमें आ रहा है। बहुत स्पष्ट बात है।
मुमुक्षुः- ज्ञानका परिणमन हो रहा है, वह वेदनमें आ रहा है।
समाधानः- हाँ, उस अर्थमें है। ज्ञानका वेदन हो रहा है। वह अर्थ है।
मुमुक्षुः- शास्त्रमेंसे यह सब समझमें आ जाता हो तो प्रत्यक्ष ज्ञानीकी जरूरत ही कहाँ है?
मुमुक्षुः- प्रत्यक्ष सदगुरु सम नहीं, परोक्ष जिन उपकार। ऐवो लक्ष्य थया विना, ऊगे न आत्मविचार। आत्मविचार भी उगे नहीं।