मुमुक्षुः- ... विशेष स्पष्टीकरण करते हुए दूसरी टीका लिखी। यह टीका पूर्ण होनेका बाद दूसरी टीका लिखी। उसमें ऐसा है कि... १७-१८ गाथाकी टीका पूरी करनेके बाद फिरसे दूसरी...
समाधानः- जानता नहीं है। ज्ञायक द्रव्यरूप स्वभावसे होने पर भी प्रगट जानता नहीं है। शक्तिमें जानता होने पर भी जानता नहीं है। सेवन करता होने पर भी, वह शक्ति एवं द्रव्यरूपसे। होने पर भी, उसका अस्तित्व होनेके बावजूद प्रगटरूपसे सेवता नहीं। प्रगटपने आराधता नहीं।
मुमुक्षुः- सामर्थ्य होने पर भी पर्याय ... जानता नहीं।
समाधानः- हाँ, नहीं जानता है।
मुमुक्षुः- होने पर भी जानता नहीं है।
मुमुक्षुः- ज्ञायक होने पर भी उसकी उपासना करनेका उपदेश क्यों देनेमें आता है? वह जो पेरेग्राफ है न उसका...
समाधानः- शक्तिमें द्रव्यरूपसे तू उस रूप है, जानता होने पर भी जानता नहीं है।
मुमुक्षुः- ... जानता ही नहीं है। ... हो रहा है तो फिर क्यों उपासना? कि सेवन ही नहीं किया। ऐसा उत्तर दिया।
समाधानः- आचार्यदेव अनुभूतिस्वरूप कहते हैं, तू अनुभवमें आ रहा है, ऐसा कहना चाहते हैं। परन्तु पुरुषार्थ करके प्रगट अनुभूति हो तब तुझे संतोष होगा। इसलिये द्रव्यरूप तू है, ऐसा आचार्यदेव कहते हैं। तेरा ज्ञायक उस रूप है। सनतभाईके साथ दूसरा कोई आया था।
मुमुक्षुः- तुझमें जो काम हो रहा है, उसे जाननेका है और तू जानता नहीं है। .... वह तू है। ... कहाँ दूसरेको पहिचानना है? जिस रूप तू है उस रूप तुझे जानना है। दूसरा हो तो ठीक कि दिखाई नहीं देता। तेरेमें ही काम हो रहा है, कायम टिकनेका। मैं शरीर, मैं राग,...
मुमुक्षुः- भैंसेका ध्यान करते-करते मैं भैंसा हो गया हूँ। आबालगोपल तुझे मनुष्यरूप ही अनुभवमें आ रहा है, मनुष्यरूप ही तू अनुभवमें आ रहा है।