Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-४)

२०६ पहिचान ले। पहिचना ले।

मुमुक्षुः- आबालगोपाल सबको उस रूप हो ही रहा है। कैसे हो रहा है, मालूम नहीं। उत्पाद-व्यय-ध्रुवकी एकतास्वरूप अनुभूति, दूसरी गाथा। सात बोल।

समाधानः- अनुभूतिस्वरूप यानी ज्ञायकरूप है। वेदन प्रगट नहीं है। उसे अपने स्वभावका वेदन नहीं है। लेकिन जड हो तो उसे अनुभूतिस्वरूप नहीं कहते। तो भी उसमें जडकी अनुभूति कहा है। लेकिन तू ज्ञायकरूप ही हो। आबालगोपालको ज्ञायकरूप अनुभूतिरूप ज्ञायक है। ज्ञायक ही है, लेकिन तू कहाँ खोजता है? तू स्वयं ही है। तू उसकी श्रद्धा कर, उसे जान। तू स्वयं ही है। तू स्वयं ही है और दूसरी-दूसरी जगह खोजने जा रहा है। दूसरी जगह खोजता रहता है। तू ही है। तेरी ओर दृष्टि कर।

मुमुक्षुः- बाहर व्यर्थ महेनत करता है।

समाधानः- बाहर व्यर्थ महेनत करता है।

मुमुक्षुः- सदा काल स्वयं ही अनुभवमें आता होने पर भी, उसका अर्थ आपने ऐसा लिया कि अनुभवमें आता होने पर भी...

समाधानः- श्रद्धा नहीं है, आचरण नहीं है, कुछ नहीं है तो भी तू है। भगवान आत्मा तू ज्याेंका त्यों है। आबालगोपाल सबको।

प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो! माताजीनी अमृत वाणीनो जय हो!