Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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समाधानः- हाँ, होना। उस रूप होना।

मुमुक्षुः- स्वभाव.. स्वभाव। ... अगुरुलघुगुणके कारण जो अनेकपनाकी ... अनुभूति और वह पर निमित्तके कारण आ पडती आपत्ति। उसमें आ पडी है, इसमें अनुभूत ली। इतना फर्क है। उसमें आया था। आज अनुभूति आया था, इस अर्थमें। मैं यहाँ आया उस दिन। आज ही यह आया-अनुभूति।

मुमुक्षुः- दो दिन पहले माताजीको १७-१८ गाथाका प्रश्न पूछा था। दो-चार दिन पहले।

मुमुक्षुः- मुझे मालूम नहीं था।

समाधानः- उस रूप वह हो रहा है, ज्ञायक ज्ञायकरूप ही हो रहा है। वह हो रहा है लेकिन उसे प्रगटरूपसे ख्याल नहीं है। स्वयं उस रूप हो रहा है। अनुभूतिस्वरूप अर्थात ज्ञायक ज्ञायकरूप, लेकिन वह मालूम नहीं है।

मुमुक्षुः- मालूम नहीं है अर्थात उपयोगात्मक नहीं करता है ऐसा?

समाधानः- उसका उपयोग-प्रगट नहीं करता है। उपयोगात्मक...

मुमुक्षुः- उपयोगमें भी नहीं है और लब्धमें नहीं है। .... तो उपयोगात्मक कहें। जानता ही नहीं।

मुमुक्षुः- नहीं, नहीं ऐसा कहना है कि छद्मस्थ जीव है इसलिये दो जगह तो उपयोग रहता नहीं। यानी उपयोगात्मक...

मुमुक्षुः- एक जगह उपयोग और बाकी सब लब्धमें। मुमुक्षुः- वह तो एक बार अनुभव होनेके बादका बराबर है। मुमुक्षुः- इसलिये यहाँ नहीं है। उपयोगात्मकका कोई मतलब नहीं है। किसी भी प्रकारसे जानता ही नहीं। उपयोगात्मक नहीं है, तो कोई अपेक्षासे जानता है, ऐसा होता है। जानता ही नहीं।

मुमुक्षुः- वह स्वीकार्य नहीं है। वह हमें स्वीकार्य नहीं है।

समाधानः- आचार्यदेव कहते हैं कि तू अनुभूतिस्वरूप हो रहा है। लेकिन तुझे उसका श्रद्धान नहीं है। और नहीं जाने हुएका श्रद्धान गधेके सिंगके बराबर है। इसलिये तू जानता भी नहीं, श्रद्धान नहीं है, आचरण नहीं है। परन्तु आचार्यदेव उसे कहते हैं, नहीं है उसका अर्थ तेरा नाश नहीं हुआ है। तू जड नहीं हो गया है। तू स्वयं है अनुभूतिस्वरूप आत्मा, बालगोपाल सबको अनुभूतिरूप हो रहा है। तू पहिचान ले। तू स्वयं ही है। तू उस रूप ही है, ज्ञायक ही है, उसे तू जान ले। तू जान ले, तेरा नाश नहीं हो गया है, तू है उसको जान ले, ऐसा कहते हैं। तू उस रूप अनुभूति स्वरूप भगवान आत्मा आबालगोपाल सदा शाश्वत है। ज्ञायक ज्ञायकरूप ही है, तू उसे