Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-४)

२१६

मुमुक्षुः- कार्य उभयसे हुआ ऐसा कहनेमें आये। ज्ञानीपुरुषके वचनसे और जीवके पुरुषार्थसे।

मुमुक्षुः- कार्य तो स्वयंने ही किया न। ज्ञानीने थोडे ही किया है। उपादानः- निमित्त कहनेमें आये। गुरुदेवने कर दिया ऐसा कहनेमें आये। करना पडता है स्वयंको। अनन्त कालमें स्वयं रखडा है। गुरुको पहिचाना नहीं है, भगवानको पहिचाना नहीं है, स्वयं रखडा है। मिले तो भी पहिचाना नहीं है, अपने दोषके कारण। इस पंचमकालमें गुरु मिले और वाणी स्वयं ग्रहण करे, अपूर्वता लगे तो अपूर्वता जागृत होती है। उनकी वाणीमें तो प्रबल निमित्त (था), उनकी वाणीका निमित्त तो प्रबल ही है, सबके लिये प्रबल है। लेकिन तैयारी स्वयंको करनी पडती है।

उनका उपकार अमाप है, लेकिन पुरुषार्थ स्वयंको करना पडता है। गुरुदेव ही ऐसा कहते थे कि तू कर तो होगा।

मुमुक्षुः- शशीभाईने बहुत अच्छी..

समाधानः- स्वाधीनतासे होता है।

मुमुक्षुः- सबको गुरुदेवने..

समाधानः- सबको गुरुदेवने दृष्टि दी। तेरा द्रव्य स्वतंत्र है, प्रत्येक द्रव्य स्वतंत्र है। तू तेरा पुरुषार्थ कर। लेकिन करनेवाला गुरुका उपकार माने बिना रहे नहीं। करनेवालेको उपकारबुद्धि आये बिना रहे नहीं।

मुमुक्षुः- करे स्वयं, फिर भी।

समाधानः- फिर भी कहे, गुरुदेव! आपने किया। आचाया भी ऐसा कहें। आचाया भी शास्त्रोंमें ऐसा ही कहते हैं।

मुमुक्षुः- परमगुरुके अनुग्रहसे।

समाधानः- हाँ, हमारे गुरुके अनुग्रहसे वैभव प्रगट हुआ। कुन्दकुन्दादि आचार्य न हुए होते तो हम जैसे पामरका क्या हुआ होता? ऐसा गुरुदेव कहते हैं। ऐसे गुरु ऐसे पंचमकालमें पधारे तो सबको उपकार हुआ, नहीं तो क्या होता? गुरुदेव पधारे तो सबको मार्ग स्पष्ट करके बताया।

मुमुक्षुः- ज्ञान मोक्षका कारण नहीं है, पुनः सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्राणी मोक्षमार्गः। तो मिथ्यादर्शन-ज्ञान-चारित्राणी बंधमार्गः, ऐसा?

समाधानः- मिथ्यादर्शन, ज्ञान, चारित्रको बंधका मार्ग कहते ही हैं। लेकिन मुख्य उसमें मिथ्यादर्शन है न। मिथ्यादर्शनके कारण ज्ञानमें मिथ्यापन कहनेमें आता है। दर्शन मिथ्या यानी ज्ञान मिथ्या और चारित्र मिथ्या है। उसकी दृष्टि ऊलटी है, इसलिये आचरण भी मिथ्या और ज्ञान भी मिथ्या। दर्शनके कारण दोनोंमें उसमें मिथ्यापना लागू पडता