है।
समाधानः- ऐसी प्रतीति, वह स्वयं निर्णय करता है, अपने पुरुषार्थसे निर्णय करता है। पहले ऐसा निर्णय होता है, बादमें अंतरमें जाता है। पहले निर्णय करे कि यह ऐसे ही है। शास्त्रमें भी ऐसा आता है, स्वयं अपनेआप नक्की करता है कि वस्तु ऐसे ही है। ऐसे निर्णय करके फिर मतिज्ञान, श्रुतज्ञान आदि सब चैतन्यकी ओर मुडता है। फिर उसके विकल्प टूटते हैं। ज्ञानीपुरुषके वचनसे स्वयं नक्की करता है। विश्वास स्वयंको करना है। वचन ज्ञानियोंके, लेकिन विश्वास कौन करता है? विश्वास तो स्वयं करता है। विश्वास स्वयंको करना है। अपने बुद्धिबलसे स्वयं नक्की करता है। उस प्रकारकी स्वयं रुचि करता है, विश्वास स्वयं करता है, नक्की करता है। पहले बुद्धिसे ऐसे नक्की करता है।
शास्त्रमें आता है न? वह वस्त्र ओढकर सो गया। उसे कहते हैं, ये तेरा वस्त्र नहीं है। लेकिन वह स्वयं लक्षणसे नक्की करता है कि वास्तवमें यह (मेरा) नहीं है। इसलिये छोड देता है। गुरु तो बारंबार कहे कि यह तेरा नहीं है, ये तू नहीं है। तू भिन्न है। ये विकल्प तू नहीं है, शरीर तू नहीं है, क्षणिक पर्यायमात्र तू नहीं है। ऐसा बारंबार कहे। लेकिन नक्की स्वयं करता है। वास्तवमें गुरु जो यह कहते हैं वह बराबर है। गुरुके वचन तो बीचमें होते ही हैं, परन्तु तैयारी स्वयंको करनी पडती है।
मुमुक्षुः- ज्ञायक कहने पर अनन्त गुण तो आ गये।
समाधानः- अनन्त गुण उसमें साथमें आ जाते हैं। ज्ञायक कोई ऐसी ज्ञायकता है कि अनन्त गुणोंसे भरी ज्ञायकता है। अपना अस्तित्व अनन्त गुणोंसे भरी ज्ञायकता है। ज्ञायकतामें अस्तित्व, वस्तुत्व आदि सब अनन्त-अनन्त शक्तियाँ उसमें आ जाती है। ज्ञायकता आनन्दसे भरी है। ज्ञायकता शान्तिसे (भरी है)। कितने ही गुण वचनमें नहीं आते, ऐसी अनन्त शक्तियोंसे भरी ज्ञायकता है।
... लक्ष्यमें भले न आवे, लेकिन उसकी महिमा आवे। विचारसे नक्की कर सकता है। ज्ञानी पर विश्वास रखना बराबर है, ज्ञानीने ही सब कर दिया। भले स्वयं कहे कि प्रभु! आपने किया और आपका उपकार है। आपने ही सब किया, हम कुछ नहीं जानते थे। आपने ही मार्ग दर्शाया। लेकिन ऐसा कहकर वे कर देते हैं, ऐसा नहीं, करना स्वयंको पडता है।
अनन्त शक्तियाँ भले गुरुदेव बतावे कि तेरा आत्मा कोई अगाध महिमासे भरा है। लेकिन उसकी प्रतीत स्वयंको करनी पडती है। स्वयं प्रतीत करता है कि बराबर है। अनन्त गुण कहीं दिखाई नहीं देते, परन्तु वह स्वयं नक्की करता है, विश्वास करता है।