२१८
मुमुक्षुः- ज्ञान होनेके बाद विकल्प है, उसका अपराध है।
समाधानः- हाँ, विकल्पका। खण्ड-खण्ड ज्ञान है, ज्ञान खण्ड-खण्ड हो उसके साथ विकल्प है। क्षयोपशम ज्ञानीको विकल्प साथमें होता है।
मुमुक्षुः- परको जानना..
समाधानः- परको जानना छोडना ऐसे नहीं, लेकिन स्वसन्मुख दृष्टि कर। तू स्वयंको जान। स्वपरप्रकाशक सहज ज्ञात हो जाय वह (अलग बात है)। लेकिन तू तेरे आत्माको जान, ऐसा कहना है। जानना छोडना ऐसे नहीं, उसकी विपरीतता छोड। यथार्थ जान। विपरीत जानना छोड। यथार्थ आत्माका स्वरूप जान इसलिये सब यथार्थ ही आयेगा। आत्मा तो स्वपरप्रकाशक उसका स्वरूप है। तू स्व-ओर उपयोग कर, ऐसा कहना है।
... बन्धकी अवस्था, विभाव अवस्था, ज्ञायक जाने तो भी ज्ञायक तो ज्ञायक ही है। प्रमत्त-अप्रमत्तकी अवस्थामें ज्ञायक तो ज्ञायक ही है। ज्ञायक पर दृष्टि करनी। दृष्टिकी प्रधानतासे कहते हैं। किसी भी अवस्थामें ज्ञायक तो ज्ञायक ही है। प्रमत्त- अप्रमत्त विभावकी अवस्था, साधककी अवस्धा, साधककी अधूरी अवस्थामें ज्ञायक तो ज्ञायक ही है। ज्ञायक स्व-परप्रकाशक। ज्ञायक परको जाने तो भी ज्ञायकको कहीं अशुद्धता नहीं आती, ज्ञायक तो ज्ञायक है। जाने इसलिये अशुद्धता नहीं आती। ज्ञायक तो ज्ञायक प्रत्येक अवस्थामें रहता है। वस्तु स्थिति ज्ञायककी.. प्रगट हुआ तो भी ज्ञायक ज्ञायक है। साधक अवस्थामें भी ज्ञायक तो ज्ञायक ही है। ज्ञायक पर दृष्टि करनी, ऐसा।
.. अवस्था पर हमारी दृष्टि नहीं है, परन्तु दृष्टि हमारी ज्ञायक पर है। ज्ञायक वह तो ज्ञायक ही है। ज्ञायक तो शुद्ध, शुद्ध ज्ञायक वह ज्ञायक है। कोई भी अवस्थामें ज्ञायक तो ज्ञायक ही है। प्रमत्त-अप्रमत्त अवस्थामें भी ज्ञायक तो ज्ञायक ही है। ... जितना नहीं है। ज्ञायक तो पूर्ण अवस्था हो तो भी ज्ञायक तो ज्ञायक ही है। उस ज्ञायक पर दृष्टि करने जैसी है। ज्ञाताधाराकी अवस्थामें ज्ञायक ज्ञायक ही है। अनादिअनन्त ज्ञायक ज्ञायक ही है।
मुमुक्षुः- प्रवचनसारमें ऐसा कहा कि ... रागरूप है और अशुभ परिणामके समय अशुभरूप है, उस वक्त आत्मा तन्मय है।
समाधानः- वह अपेक्षा अलग है। यहाँ तो द्रव्य पर दृष्टि करनी, द्रव्यकी प्रधानतासे बात है। द्रव्यदृष्टिकी प्रधानतासे बात है। द्रव्य अनादिअनन्त शुद्ध ही है। उस द्रव्य पर दृष्टि करनी। चाहे किसी भी अवस्थामें ज्ञायक ज्ञायक ही है। ज्ञायकमें,.. पर्यायके कारण ज्ञायकमें अशुद्धता नहीं आती, ऐसा कहते हैं। और यहाँ कहते हैं कि जो पर्याय होती है, वह पर्याय कहीं ऊपर-ऊपर अलग नहीं है, द्रव्य उस रूप परिणमता है, ऐसा कहनेका आशय है। प्रवचनसारमें। अशुद्धताकी अवस्थामें तेरा द्रव्य उसमें परिणमता है,