Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-१७३

करके स्वयंको नक्की करना है। सत्पुरुषको पहिचानना हो तो स्वयं ही नक्की करना है।

जिसे सतकी रुचि जागृत हुयी, उस रुचिवालेके हृदयके नेत्र ही ऐसे हो जाते हैं कि वह सत्पुरुषको पहिचान लेता है कि ये सत्पुरुष है। इस प्रकार उसके हृदयके नेत्र ही निर्मल हो जाते हैं।

वैसे स्वयं अपनेआप आत्माका स्वभाव निश्चित कर सकता है कि यह मेरा स्वभाव है और यह मैं नहीं हूँ। कोई अपूर्वता मेरेमें भरी है, ऐसा स्वयं नक्की कर सकता है। ऐसा कोई आत्माका नक्की करनेका स्वभाव है।

मुमुक्षुः- जिसे आत्माकी अनुभूति होती है, और हम सामान्य मनुष्य हो और जिसे आत्माकी अनुभूति हुयी हो, उनके जीवनमें क्या फर्क पडता है?

समाधानः- उनका जीवन बाहरसे देखना बहुत मुश्किल है। अंतरमें उसे आत्मा भिन्न ही रहता हो। जो अंतरमें विकल्प होते हैं, उससे भिन्न, उसका आत्मा भिन्न (रहता है)। उसे एकत्वबुद्धि नहीं होती। शरीरके साथ, विकल्पके साथ एकत्वबुद्धि (नहीं होती)। उसका आत्मा भिन्न ही (रहता है)। उसे क्षण-क्षणमें मैं जाननेवाला ज्ञायक हूँ, ज्ञायक हूँ, ज्ञायक हूँ, ऐसी उसकी सहज धारा चलती हो। ज्ञायककी धारा। और कोई बार उसे विकल्प टूटकर स्वानुभूति (होती है)। आत्मामें ऐसा एकाग्र हो जाय कि बाहरमें क्या हो रहा है, वह उसे मालूम नहीं पडे। वह आत्मामें ऐसा लीन हो जाता है और ऐसा अनुपम आनन्द उसे आता है कि जगतमें कोई वस्तुमें ऐसा आनन्द नहीं है। ऐसा अनुपम आनन्द उसे प्रगट होता है।

उसका आत्मा भिन्न ही भिन्न अंतरमें काम करता है। उसे भेदज्ञानकी धारा रहती है। लेकिन वह उसके बोलनेमें, उसके परिचयसे ख्यालमें आता है कि अंतरमें इनका हृदय भिन्न है। उसकी दृष्टि कोई अलग काम करती है, उसकी परिणति कोई अलग काम करती है।

आत्माकी अनुभूति कोई जगतमें जान न सके, ऐसा अनुपम आत्मा है, उसकी अनुभूति उसे होती है। ऐसी शान्ति और आनन्द। आकुलतासे छूटकर ऐसा ज्ञान और ऐसा आनन्द (अनुभवमें आता है)। अनन्त गुणोंसे भरा, अनन्त शक्तियोंसे भरा ऐसा चैतन्यदेव विराजता है, उसकी उसे अनुभूति होती है।

मुमुक्षुः- आप कहते हो न कि वांचन और कोई ज्ञानीपुरुषको सुनना। ऐसे बरसों बीत जाते हैं। जहाँ कोई मिले वहाँ सुनने जाते हैं। यहाँ बहिनश्री अच्छा बोलती हैं तो यहाँ चलते हैं। लेकिन मेरा ऐसा अनुभव है कि ऐसे सुननेसे सिर्फ जानने मिलता है।

समाधानः- रुचि ही नहीं लगी है, इसलिये ऐसा हो जाता है। खरी रुचि और श्रद्धा नहीं है कि अंतरमें ही सबकुछ है। उतनी श्रद्धा नहीं है। इसलिये वापस मुड