२५२ जाता है। अपने पुरुषार्थकी क्षति है। अंतरमें कोई अपूर्वता भरी है। आत्मामें कोई अनुपमता भरी है, वह प्रगट करने जैसा है। ये सब निःसार है, सारभूत नहीं है। विभावके साथ एकत्वबुद्धि करने जैसी नहीं है। उतनी जो अंतरमें स्वयंकी रुचि होनी चाहिये, उस रुचिकी क्षति है। इसलिये वह वापस आ जाता है। वापस आनेका कारण अपना ही है। कुछ पढे, विचार करे, परिचय करे तो भी कोई फर्क न पडे तो अपनी ही क्षति है।
यथार्थ रुचि जिसे अंतरसे हो कि आत्मामें कोई अपूर्वता भरी ही है और यह निश्चित है, इतना यदि विश्वास हो तो उसे देव-गुरु-शास्त्र जो कहते हैं, सच्चे देव, सच्चे गुरु... गुरुने ऐसी साधना प्रगट की, भगवानने ऐसी पूर्णता प्रगट की, ऐसे आत्माको प्राप्त किया। उन पर उसे कोई अपूर्व महिमा आये। आचायाने शास्त्रमें (ऐसा कहा है), उसे कोई अपूर्व महिमा उन पर आती है। अपने स्वभावकी महिमा आये। इसलिये उसके जीवनमें अमुक प्रकारसे परिवर्तन तो उसकी रुचिके कारण हो ही जाता है, नहीं होनेका कारण अपनी रुचिकी क्षति और अपने विश्वासकी क्षति है। उसे बाहरका विश्वास आया है, परन्तु अंतरका विश्वास ही नहीं आया है। इसलिये वह पलट जाता है।
भले उसे स्वानुभूति होनेमें देर लगे, लेकिन अंतरमें यथार्थ रुचि जागृत हो कि करना तो यही है, तो उसका जीवन पलट जाय, तो उसे कहीं चैन नहीं पडता। उसे कोई लौकिक कायामें खडा हो तो भी मुझे कुछ अलग ही करनेका है, मुझे अंतरमें जाना है, इसमें मुझे कहीं नहीं रस नहीं है। उसे रस नहीं लगता है, उसे आत्मामें रस लगे, आत्माकी बातोंमें रस लगे, ऐसे ज्ञानीपुरुषोंको देखकर उसे रस लगे। ऐसा सब उसे आत्माकी रुचि पलटे तो उसे हर जगह रस लगे। आत्मा-ओरकी बातोंमें रस लगे, दूसरी सब बातें उसे रसयुक्त नहीं लगती। इस प्रकार उसे जीवनमें परिवर्तन हो जाता है।
मुमुक्षुः- .. रुचि कैसे हो?
समाधानः- रुचि, अन्दर यथार्थ विश्वास करना कि इसीमें सबकुछ है, कहीं और नहीं है। इतना स्वयं विश्वास करके नक्की करे तो परिवर्तन होता है।
मुमुक्षुः- बुद्धिसे समझकर रुचि उत्पन्न हो, ऐसा नहीं परन्तु जिसे ऐसा कहें कि तुरन्त एकदम उत्पन्न हो जाय, बेचैन कर दे, कहीं चैन न पडे, ऐसी तीव्रता कैसे हो?
समाधानः- अंतरसे स्वयंको पुरुषार्थ करना पडता है। वास्तवमें इसमें कुछ नहीं है, ये निःसार ही है, ऐसी तैयारी स्वयंको ही करनी पडती है, कोई कर नहीं देता। यदि कोई कर देता हो तो स्वयं पराधीन हो गया। तो कोई कर दे और कोई ले ले। पराधीन नहीं है, स्वयं स्वाधीन है। जगतमें रखडना और जन्म-मरण करना अपने