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हाथकी बात है, उससे छूटना वह भी अपने हाथकी बात है। जन्म-मरण करनेवाला स्वयं स्वतंत्र और मोक्ष करनेवाला भी स्वयं स्वतंत्र है। ऐसी स्वतंत्रता आत्माकी है। अपनी स्वतंत्रतासे स्वयं पलटता है। उसमें गुरु निमित्त होते हैं, देव निमित्त हों, शास्त्र निमित्त हों, परन्तु पलटनेका मूल कारण तो स्वयंका ही है। रखडनेवाला भी स्वयं और मोक्ष करनेवाला भी स्वयं ही है।
मुमुक्षुः- सब आत्माको साक्षात्कार हो, ऐसा कुछ है? अथवा उसमें भी कोई भिन्न-भिन्न स्तर होगा?
समाधानः- आत्माका स्वभाव तो ऐसा ही है कि आत्म साक्षात्कार कर सके।
मुमुक्षुः- कर सके, कोई भी आत्मा कर सकता है।
समाधानः- कोई भी आत्मा कर सकता है। परन्तु उसका पुरुषार्थ स्वयंको करना पडता है।
मुमुक्षुः- उसमें भी कोई भूमिका है कि यह प्रथम भूमिका है, दूसरी भूमिका है, एक उससे ऊँचा है। कोई थोडे पुरुषार्थसे ऊपर आ जाय, किसीको आजीवन, दूसरे जन्ममें भी पुरुषार्थ करना पडे?
समाधानः- जिसके पुरुषार्थकी मन्दता होती है वह लंबे समय तक पुरुषार्थ करता रहे। थोडा-थोडा, थोडा-थोडा पुरुषार्थ करता रहे, उग्रता न हो तो लंबे काल तक चलता है। कोई जीवको ऐसी उग्रता हो जाय तो क्षणमात्रमें स्वयं पलट जाता है, तो जल्दी करे। जिसका पुरुषार्थ धीरे-धीरे, धीरे-धीरे चलता हो तो लंबा काल चलता रहे। और उग्रता आये तो तुरन्त हो जाय।
मुमुक्षुः- नहीं, जैसे हमारे धर्ममें कहते हैं कि कर्मकी थीयरी गिने। आपके कर्म ही अमुक प्रकारसे खत्म होते जाय, ऐसे तुम्हे आत्माके साथ...?
समाधानः- नहीं। कर्म है न वह कर्म तो मात्र निमित्त है। कर्मके कारण जीव रखडता है (ऐसा नहीं है)।
मुमुक्षुः- तो फिर अपनेमें एक घरकी दो बहनें हों, उनका ब्याह हुआ हो, एक ही घरमें बडी हुई हैं, तो कोई एक साधारण घरमें जाती है, एक बडे घरमें जाती है, तो वह उसके कर्म अनुसार है?
समाधानः- वह कर्म अनुसार है। वह तो पुण्य-पापका कारण है। पुण्य-पापका कारण है। पूर्वमें स्वयंने...
मुमुक्षुः- उसी तरह आत्माको भी डिग्री अनुसार कोई फर्क होता होगा न?
समाधानः- बाह्य संयोग प्राप्त होना वह सब पुण्य-पापका कारण है। लेकिन अन्दर आत्माका परिवर्तन करना वह अपने पुरुषार्थकी बात है।