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मुमुक्षुः- गुरुदेवके पास तो अपनी भावनासे जाय। वहाँ गुरुदेवको पहचानना कठिन पडे। वहाँ गुरुदेवको पहिचानना कठिन पडे कि यही कानजीस्वामी है। वहाँ तो देवका रूप होगा। अवधिज्ञानका उपयोग रखे... तब मालूम पडे न। ऐसा अवधिज्ञान तो है नहीं। देवमें तो अवधिज्ञान तो होता ही है।
मुमुक्षुः- भले ही देवमें हो, लेकिन देव उसका उपयोग करे ही ऐसा कुछ है? माताजीकी तो बात ही क्या करनी। दो मिनिट तो उपदेश दीजिये।
समाधानः- उपदेश क्या देना? गुरुदेवने कहा है वह आपने हृदयमें ग्रहण किया है, वही करनेका है। दुसरा क्या?
मुमुक्षुः- गुरुदेवने क्या कहा है, उसका संक्षेपमें.. समाधानः- गुरुदेवने ज्ञायक आत्माको पहचाननेको कहा है। ज्ञायक ज्ञायक आत्मा, ज्ञायक आनन्दसे भरा चैतन्यतत्त्व भिन्न है, उसे पहचानना। सबसे भिन्न तत्त्व शाश्वत आत्मा, उसे पीछाननेको कहा है। वह करना है।