Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 1140 of 1906

 

२८७
ट्रेक-१७८

मुमुक्षुः- .. फिरसे वहीं पहुँच जाते हैं। उसका कोई मार्ग बताईये।

समाधानः- बदल देना, बारंबार बदल देना। बारंबार उपयोग पलटकर गुरुदेवने जो कहा है, उसीका मनन, उसीका चिंतवन, वही करना। आत्मा अपने स्वभावसे शाश्वत रहनेवाला, उसका स्वभाव शाश्वत ध्रुव, उसका उत्पाद-व्यय सब उसमें है। दूसरे परद्रव्यके परद्रव्यमें हैं। उससे भिन्न-न्यारा है। उसे पहचान लेना। संयोग परसे दृष्टि उठाकर अंतरमें दृष्टि करना। अंतरको देखनेकी अंतरचक्षुको प्रगट करना। बाह्य चक्षुसे नहीं दिखेगा।

मुमुक्षुः- .. व्यक्तिको वह करना चाहिये, ऐसा मैं मानता हूँ। परन्तु अन्दरमेंसे स्थिर नहीं हुआ जाता। आप कोई रास्ता बतायेंगे?

समाधानः- आत्माको ग्रहण करके अंतरमें.. गहरी गुफा यानी चैतन्यतत्त्वको पहिचान। उसका स्वभाव पहचानकर अन्दर लीनता करे तो जा सकता है। पुरुषार्थकी मन्दता हो तो जा नहीं सकता। पुरुषार्थकी उग्रता हो तो जा सकता है। आत्माको पीछानना कि आत्मा कौन?

पहले भेदज्ञान करे कि ये शरीर भिन्न और आत्मा भिन्न। विभावस्वभाव अपना नहीं है। ऐसे भेदज्ञान करे। चैतन्यतत्त्वको पहले न्यारा-भिन्न पहचाने कि मैं चैतन्यतत्त्व भिन्न हूँ। मैं ज्ञायक स्वभाव, आनन्द स्वभावसे भरा हुआ एक तत्त्व हूँ। उस तत्त्वको बराबर अंतरमेंसे ग्रहण करके फिर उसमें लीनता करे तो उसमें जा सकता है। पहले अमुक प्रकारसे जा सकता है, क्योंकि अमुक प्रकारकी पहले एकत्वबुद्धि टूटती है। भेदज्ञान होता है कि मैं भिन्न हूँ और यह विभावस्वभाव भिन्न है। उसका भेदज्ञान करके उसमें एकाग्रता करे, ध्यान करे तो उसमें उसे शान्ति और आनन्द प्राप्त होता है। परन्तु जब तक अमुक प्रकारसे अस्थिरता हो तो वह बाहर आता है। परन्तु बारंबार-बारंबार उसमें जानेका अभ्यास करे तो जा सकता है। पुरुषार्थ करे।

पहले आत्माका अस्तित्व ग्रहण करे। तो उसमें स्थिर हो। अस्तित्व ग्रहण किये बिना स्थिर कहाँ होगा? इसलिये पहले अपना अस्तित्व ग्रहण करे कि मैं यह चैतन्य ज्ञायकतत्त्व सो मैं हूँ। इस प्रकार उसका अस्तित्व बराबर ग्रहण हो तो उसमें स्थिरता हो, तो उसमें ध्यान हो।

मुमुक्षुः- दूसरी एक बात यह है कि दर्शन, ज्ञान, चारित्र ये तीन वस्तु मोक्षका मार्ग है। दर्शन और ज्ञान। तो वांचन, सत्समागम और उस प्रकारसे आत्माको प्राप्त कर सकते हैं। बाह्य रीतसे अर्थात मैं ऐसा कहता हूँ कि आगमके वांचनसे, शास्त्रोंके वांचनसे और सत्पुरुषोंके समागमसे वह हो सकता है। और चारित्र है.. अपने यहाँ मुझे ऐसा लगा है कि चारित्र पर कम वजन दिया जाता है।

समाधानः- यथार्थ सम्यग्दर्शन और ज्ञान प्राप्त नहीं हुआ है। चारित्र यानी बाहरकी