Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-१८१

समाधानः- अशातारूप भाव नहीं, वह एक जातकी भावना है, उसकी रुचि है।

मुमुक्षुः- पूर्वमें आत्मााका स्वरूप जाना नहीं है इसलिये गुप्त है?

समाधानः- आत्माका स्वरूप जाना नहीं है। गुरु बताते हैं और जाना नहीं है। अनादिसे स्वयंकी ओर दृष्टि ही नहीं की है और उसका प्रयत्न नहीं करता है। उसकी रुचि जितनी चाहिये उतनी करता नहीं, इसलिये गुप्त है।

मुमुक्षुः- स्वयंकी पहचान हो तो ज्ञानीको पहिचाने?

समाधानः- दोनों निमित्त-उपादान साथमें ही हैं। वास्तविक स्वयंको पहिचाने तो ज्ञानीकी पहचान हो। ज्ञानीको पहचाने वह स्वयंको पहचाने। वह निमित्त-उपादान (सम्बन्ध है)। यथार्थ पहचानना, जैसा वस्तुका स्वरूप है वैसी ज्ञानीकी दशा पहिचाननी, उसे पहिचाने। दोनों वास्तविकरूपसे साथमें हैं। और स्वयं पुरुषार्थ (करे)। स्वयं अपनेसे अनजाना है तो जिसने वस्तुका स्वरूप जाना है उसे तू पहिचान। ऐसे निमित्तकी ओरसे ऐसा कहनेमें आये कि ज्ञानीको तू पहचान तो तो तुझे पहचान पायगा। इसलिये ज्ञानी उसका निमित्त है और स्वयं उपादान है।

परन्तु वास्तविक कब पहिचाना कहा जाय? ज्ञानीको अमुक लक्षण परसे पहिचाने। परन्तु स्वयं स्वयंको पहिचाने तो ज्ञानीकी उसे बराबर पहिचान होती है। परन्तु बराबर पहिचाना कब कहा जाय? स्वयंको पहिचाने और ज्ञानीको पहिचाने, दोनों साथमें ही है।

पहले अमुक लक्षणोंसे ज्ञानीको पहचान ले। ज्ञानीकी वास्तविक दशा तो उसकी उतनी शक्ति नहीं है इसलिये उपादान-निमित्त दोनोंका योग हो तब पहिचानता है। परन्तु अमुक लक्षणोंसे पहले ज्ञानीको पहिचाने कि ये ज्ञानी हैं। ऐसे पहचानकर, फिर जो मार्ग बताते हैं, उस मार्गको जाननेका स्वयं प्रयत्न करे, अन्तरमें उतारनेका प्रयत्न करे। तो ज्ञानी उसका निमित्त होते हैं, उपादान स्वयं है।

गुरुदेवको लक्षणसे पहिचानकर, ये अपूर्व बात करते हैं। फिर जो आत्माका स्वरूप बताते हैं, वह कोई अपूर्व बताते हैं। ऐसे स्वयं अपूर्वतको ग्रहण करे, मार्गको स्वयंके उपादानसे ग्रहण करे। फिर वास्तविक स्वरूप तो स्वयंको पहिचाने तो ज्ञानीकी पहचान हो। ऐसा निमित्त-उपादानका सम्बन्ध है। परन्तु पहले ज्ञानीको लक्षण द्वारा पहिचान ले कि ये ज्ञानी ही हैं। जिसकी सत जिज्ञासा होती है, उस जिज्ञासुके, श्रीमद कहते हैं न, उसके हृदयके नेत्र ही ऐसे हो जाते हैं कि वह ज्ञानीको पहिचान लेता है।

मुमुक्षुः- कृपालुदेवने कहा है कि ज्ञानरूपी बडा वन है, जितनी ताकत हो उतनी पहचान हो तो लाभ हो। ऐसा लिखा है। जितनी पहिचान हो उतना लाभ है। पूर्ण पहिचान हो तो पूर्ण लाभ है।

समाधानः- उतना लाभ है, पूर्ण लाभ है। परन्तु अमुक लक्षणसे पहिचान ले