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समाधानः- हाँ, स्पष्ट भिन्न दिखता है। भिन्न दिखता है लेकिन उपयोग जो अन्दर लीन होना चाहिये वह लीनता नहीं है। लीनताकी उग्रता करनेसे तुझे विकल्प टूटकर निर्विकल्प दशा होगी। उसकी उग्रता, बारबार उसकी उसकी उग्रता करनेसे विकल्प टूट जायगा और स्वानुभूति होगी।
मुमुक्षुः- तबतक विकल्पात्मक भेदज्ञान है?
समाधानः- हाँ, विकल्पात्मक है।
मुमुक्षुः- तबतक विकल्पात्मक भेदज्ञान है। अनुभवपूर्वकका, थोडा अनुभवपूर्वकका भेदज्ञान है और वह स्वयं भी..
समाधानः- भिन्न देखता है लेकिन उसकी उग्रता नहीं है।
मुमुक्षुः- उग्रताके लिये बारबार वही अभ्यास करनेसे, उग्रता होनेपर निर्विकल्पता हो।
समाधानः- फिर निर्विकल्पता होती है। और लीनताकी उग्रता होती है। ज्ञायककी उग्रता करनेसे स्वानुभूति होती है। है तो सही, लेकिन नहीं है। भिन्नता तो हो ही गयी है, लेकिन उसकी उग्रता नहीं है।
मुमुक्षुः- मात्र विकल्पात्मक, बुद्धिपूर्वकका विकल्पात्मक नहीं है।
समाधानः- नहीं, बुद्धिपूर्वक नहीं है।
मुमुक्षुः- रागकी तो बात ही नहीं है।
समाधानः- वह नहीं है। लेकिन उसकी उग्रता करनेको कहते हैं। बारबार उसकी उग्रता करनेसे, लीनता करनेसे स्वानुभूति होती है। और कितनोंको तो उग्रता, उन्होंने कहा है कि तत्क्षण हो जाती है। उसे ऐसी उग्रता अंतर्मुहूर्तमें हो जाती है कि शीघ्र स्वानुभूति हो जाती है।
मुमुक्षुः- किसीको समय भी लगे, लंबा समय लगे।
समाधानः- हाँ, किसीको समय लगे। उसकी उग्रता नहीं है। बाकी भेदज्ञान, कोई भी सूक्ष्म विकल्प अथवा स्थूल विकल्प, सबमें भेदज्ञान वर्तता है। उसे ज्ञायक तो भिन्न है, परन्तु उसे उग्रताकी क्षति है।
मुमुक्षुः- उग्रताकी क्षतिके हिसाबसे निर्विकल्पता पर्यंत पहुँचता नहीं है।
समाधानः- निर्विकल्पता पर्यंत पहुँचा नहीं। परन्तु सम्यग्दर्शन तो तभी कहनेमें आता है, जब स्वानुभूति हो, बादमेें जो सहज दशा होती है उसे सम्यग्दर्शन कहते हैं। निर्विकल्प हो बादमें।
मुमुक्षुः- उसके पहले तो नाम प्राप्त होता ही नहीं न?
समाधानः- नहीं, उसके पहले नाम प्राप्त नहीं होता। वह तो अभ्यास है, अभ्यास है।