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मुमुक्षुः- उत्पाद और व्यय तो क्रमशः होते ही रहते हैं।
समाधानः- उत्पाद, व्यय और ध्रुव, सब एक समयमें होता है। जिस समय उत्पन्न होता है, उसी समय व्यय होता है, उसी समय ध्रुव है। उत्पाद, व्यय और ध्रुव आत्माका स्वरूप है। उत्पाद, व्यय, ध्रुव, प्रत्येक द्रव्यमें उत्पाद, व्यय, ध्रुव होते रहते हैं। स्वभावकी ओर मुडे तो स्वभावका उत्पाद हो। ये विभावकी ओर है तो विभावका उत्पाद होता है।
मुमुक्षुः- स्वभावकी ओर मुडे तब उसे उसका उत्पाद-व्यय कैसे ख्यालमें आये?
समाधानः- स्वभाव तो अनादि अनन्त स्वयं ही शाश्वत ज्ञायक आत्मा है। वह तो ध्रव स्वरूप है। ध्रुव भी अपनी ओर मुडकर जो उत्पाद हुआ, अपनी ओर स्वभावकी पर्याय हुयी, उसका स्वयंको वेदन हुआ, वह स्वयंका उत्पाद हुआ।
मुमुक्षुः- फिर व्यय?
समाधानः- व्यय-विभावका व्यय हुआ और स्वभावका उत्पाद हुआ।
मुमुक्षुः- स्वभावका उत्पाद और विभावका व्यय, उस समय ध्रुव?
समाधानः- उस समय ध्रुव स्वयं है।
मुमुक्षुः- यानी ज्ञायक स्वभाव?
समाधानः- हाँ, ज्ञायक ध्रुव है। सम्यग्दर्शनकी प्राप्ति हुयी, सम्यग्दर्शनका उत्पाद हुआ और मिथ्यात्वका व्यय हुआ। मिथ्यात्वका नाश हुआ और सम्यग्दर्शनका उत्पाद हुआ और आत्मा ध्रुव है।
मुमुक्षुः- ध्रुव, पर्यायको स्पर्श नहीं करता है न?
समाधानः- ज्ञायक स्वयं ध्रुव ही है।
मुमुक्षुः- तो पर्यायार्थिक ...
समाधानः- .. उत्पाद है वह पर्याय है। पर्याय होती ही रहती है। अनादिसे। अन्दर स्वभावका उत्पाद, विभावका व्यय। फिर जिसकी दृष्टि आत्माकी ओर गयी उसे स्वभावका उत्पाद, स्वभावकी निर्मलता, स्वभावका उत्पाद होता रहता है।
मुमुक्षुः- विभावदशाका..