अमृत वाणी (भाग-४)
३४२ अन्दर उपादानमें स्वयंको ग्रहण करना चाहिये वैसे नहीं किया।
अर्ध पुदगल परावर्तन आया था और भावमें अपूर्व करण और अधःकरण आया था। द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव सब आया था। पंच कल्याणक आदि।
मुमुक्षुः- क्षेत्रमें अर्ध पुदगल परावर्तनमें काल,..
समाधानः- कालमें अर्ध पुदगल परावर्तन। उसकी स्थिति और रस कम हो जाय न। अर्ध पुदगलका काल रह जाय।
.. अपनी ओर मुड जाता है। वेदनामेंसे किसीको ऐसा हो जाता है। पूर्व भवमेंसे ऐसा हो जाय, संसारका वैराग्य आ जाय। परन्तु यथार्थ ज्ञान बिना वह होता नहीं। अपना ज्ञान करे। वह मूल मार्ग (है)।
प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो!