Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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गुण (हैं)। आनन्दादि गुण है, वह तो उसे स्वानुभूतिमें-अनुभवमें आयेगा। बाकी ज्ञायक तो उसका मुख्य गुण है। वह तो उसे प्रतीतमें आये ऐसा है। करना स्वयंको करना है। अन्दर गहराईसे विश्वास करके स्वयंको ही करना है।

मुमुक्षुः- लेकिन वह जो कहा न, थोडा धक्का मारनेकी जरूरत लगे। उपादान उसका काम करे, परन्तु निमित्तमेंसे थोडा धक्का लगे तो...

समाधानः- जो है वह प्रगट करना है, उसका प्रयत्न करनेमें थकना नहीं। करना स्वयंको हो। देव-गुरु-शास्त्र साथमें हो तो अपनेको ज्यादा लाभ होता है। वह स्वयं करनेवाला है।

मुमुक्षुः- भगवान पधारे तो आप कितनी महिमा करते हो।

समाधानः- भगवान सर्वोत्कृष्ट हैं। उनकी क्या बात करनी। गुरु साधना करे, शास्त्र सब बताये। वह सब तो आदर करने योग्य है। महिमारूप है। सर्वोत्कृष्ट जगतमें है। ज्ञायक आदरने योग्य है। भगवान सर्वोत्कृष्ट है। गुरु साधना करते हैं। वे भी आदरने योग्य हैं। पंच परमेष्ठी आदर करने योग्य हैं। अंतरमें ज्ञायकका प्रेम हो तो जो दिखे उनका दर्शन, जिन्होंने प्रगट किया उन पर उसे आदर आये बिना रहे ही नहीं। अन्दर आदर न आये तो उसे ज्ञायकका भी आदर नहीं है। आदर हो तो देव-गुरु-शास्त्रका आदर आये बिना रहे नहीं।

देव-गुरु-शास्त्रका आदर है वह ज्ञायकको प्रगट होनेका कारण है। ऐसा निमित्त- उपादानका सम्बन्ध है। कल टेपमें आया था न? सब कारण आये थे। भगवान सम्यग्दर्शनका कारण, फिर पंच कल्याणक सम्यग्दर्शनका कारण, जिनबिम्ब सम्यग्दर्शनका कारण, देवलोककी ऋद्धि सम्यग्दर्शनका कारण, फिर क्षेत्र। भगवानके क्षेत्र हों, महापुरुषोंके क्षेत्र जहाँ विचरे हों, वह सब क्षेत्र सम्यग्दर्शनका कारण है। ऐसा सब आया था।

मुमुक्षुः- जातिस्मरण।

समाधानः- हाँ, जातिस्मरण, वेदना ऐसा सब आया था। वह कारणरूप। करना अन्दर स्वयंको है, परन्तु यह सब कारण हैं। गुरुदेवकी टेपमें ही आया था। यथार्थ ज्ञान हो तो ज्ञायकको पहचाने। परन्तु जिसने प्रगट किया, जिनबिंब, साक्षात भगवान, उनके क्षेत्र वह सब आया था। पंच कल्याणक।

यह गुरुदेवका क्षेत्र है। गुरुदेव यहाँ रहे। कल क्षेत्रका आया था। करना स्वयंको है। अपना ज्ञायक कारण है। कारण स्वयं है। मूल वह है। ऐसा आया था। ये सब कारण हैं। स्वयं है। परन्तु ये सब व्यवहारके कारण है। फिर ऐसा आये कि अनन्त बार मिला, परन्तु हुआ नहीं। उसमें भी अपना ही कारण है। स्वयं तैयार नहीं हुआ। निमित्त तो निमित्तरूप था ही, परन्तु स्वयंने ग्रहण नहीं किया। निमित्तको जिस प्रकार