Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-४)

३४० क्यों नहीं होता है? ऐसा कर-करके भावना चलती थी। यही सत्य है तो पुरुषार्थ क्यों नहीं हो रहा है? इस तरह भावना उग्र हो उस प्रकारसे।

... क्यों होती नहीं? झँखना क्यों नहीं होती? इतने साल बीत गये, अब बाकीके वर्ष जानेमें कहाँ देर लगनेवाली है? क्यों नहीं हो रहा है? ऐसी भावना रहा करे। पुरुषार्थ उस ओर ही चले, उसीके विचार चले। हर वक्त काम करते हुए, हर वक्त एक ही विचार रहे। जो करे उसे हो। सबको हो, परन्तु जो करे उसे हो। स्वभाव आत्माका है, सब कर सकते हैं। परन्तु जो करे उसे हो। स्वभावकी उग्रता जो करे उसे हो।

मैं ज्ञायक हूँ, ज्ञायक हूँ, उसकी उग्रता स्वयं (करे)। विकल्परूपसे भावना रूप हो वह अलग बात है, अन्दर सहजरूपसे उग्रता कैसे करनी, वह स्वयं करे तो हो। कहीं दूर नहीं है, स्वयं समीप ही है। परन्तु स्वयं ही नहीं जाता है। इसलिये दूर लगता है। अपना स्वभाव है, कहीं दूर नहीं है। स्वयंमेंसे ही प्रगट हो ऐसा है। कहीं लेने जाना पडे ऐसा नहीं है। बाहर कोई परद्रव्यमें नहीं है कि वहाँसे कोई दे नहीं। स्वयंमें ही है, स्वयं समीप ही है, स्वयं ही है। परन्तु स्वयं अन्दर जाय तो प्रगट हो। स्वयं ही नहीं जाता है।

"पोतानी आळसे रे, निरख्या नहि हरिने', गुरुदेव कहते थे। निज नयननी आळस। अपनी दृष्टिकी आलस्यके कारण स्वयं रुका है। दृष्टि निज चैतन्य हरि पर करता नहीं, इससिये स्वयं रुका है। अपनेमें ही पडा है और अपनेमें-से प्रगट होता है। स्वयं ही उस ओर दृष्टि करता नहीं। अपने नेत्रकी आलसके कारण स्वयं देखता नहीं है। दृष्टि बाहर घुमाता है, अन्दर देखे तो हो।

.. कहीं नहीं है। अपनेमें दृष्टि फेरनी है, परन्तु फेरता नहीं। गुरुदेवने कितना मार्ग बताया। दृष्टि स्वयंको फेरनी है। दृष्टिके बलसे ही प्रगट होता है। दृष्टि, ज्ञान और उसके साथ परिणतिकी लीनता हो तो स्वयंमें-से ही प्रगट होता है। छोटीपीपर घिसे तो उसमें जो चरपराई है उसीमेंसे प्रगट होती है। वैसे स्वयं अपने पर दृष्टि करे तो अपनेमें- से ही प्रगट होता है। बाहरसे कहींसे नहीं आता। उतना दृष्टिका बल, उतना प्रतीतका बल आये तो प्रगट हो। प्रतीत-दृष्टिका जोर आये तो ही अन्दरसे प्रगट होता है। अन्दर प्रतीतके बल बिना तो उसकी परिणति उस ओर जोरसे जाती नहीं। दृष्टिका बल, प्रतीतका बल, उसका प्रतीतका जोर आये तो उस ओर परिणति जाय। ऐसे कहे कि प्रतीत है, परन्तु अन्दर जो भेदज्ञानके अन्दर ज्ञायककी प्रतीति जोरदार अंतरमेंसे आनी चाहिये वह आये तो प्रगट हो।

(ज्ञान) तो असाधारण गुण है। वह तो लक्ष्यमें आये ऐसा है। बाकी दूसरे अनन्त