Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-४)

३४४ है। क्षयोपशम है उसका मलतब उसे लथडपथड नहीं है। वह तो दृढतारूप है। वह तो उसे क्षय नहीं हुआ है, उतना। बाकी वर्तमान वेदनमें तो उसे ऐसा कुछ.. उसकी दृढतामें न्यूनता नहीं है। वह तो उसकी अवगाढतामें फर्क है। क्षायिकका अवगाढ और यह क्षयोपशम है। चारित्रदशामें मुनि विशेष है।

क्षयोपशम अर्थात उसकी प्रतीतमें कुछ उसे प्रगटरूपसे हलचल नहीं है, ऐसी अस्थिरता नहीं है। वह तो दृढरूप है। ज्ञायककी धारा जोरदार है और छठवे-सातवें गुणस्थानमें झुलते हैं। चारित्रकी अपेक्षासे मुनि विशेष है।

मुमुक्षुः- दृष्टिकी अपेक्षासे तो क्षायिक समकित हुअ।

समाधानः- उसे क्षायिककी अपेक्षासे कहनेमें आये, परन्तु वर्तमान तो उसकी चारित्रदशाकी निर्मलता है न। ज्ञान, दर्शन, चारित्रकी विशेषता है यानी मुनि विशेष कहलाये। दृष्टिकी अपेक्षासे अलग बात है। दृष्टि यानी उन्हें दृष्टि विपरीत तो नहीं है। मुनि सम्यग्दृष्टि है और चारित्रकी निर्मलता है। मुनिकी दृष्टिकी अपेक्षासे अलग बात है। दृष्टिकी अवगाढतामें फर्क है। मुनि आगे बढे, चारित्रदशा बढ जाय तो उसे दृष्टि भी जोरदार हो जाती है। चारित्रदशामें मुनि विशेष हैं। दृष्टिकी अपेक्षासे उन्हें... दृष्टिका फर्क है।

मुमुक्षुः- चारित्रमें इतने आगे बढे और दृष्टिमें क्षायिक न कर सके उसका क्या कारण?

समाधानः- वह तो परिणाम पर है। परिणामकी गति अनेक जातकी होती है। अकारण पारिणामिक द्रव्य, अनेक जातके परिणामकी गति है। चारित्रकी अपेक्षासे मुनि विशेष है। ज्ञान, दर्शन, चारित्र तीनों आराध्य हैं, इसलिये मुनि विशेष हैं। चारित्रकी दशा विशेष प्रगट हुयी है। परिणामकी गति अनेक जातकी होती है, पुरुषार्थकी गति।

क्षायिक सम्यग्दृष्टि गृहस्थाश्रममें हो, राजकाजमें हो और मुनिको क्षयोपशम हो तो भी मुनि हैं। मुनिका सब आदर करते हैं। पुरुषार्थकी वहाँ ...

मुमुक्षुः- दृष्टि .. करनेका पुरुषार्थ न करे?

समाधानः- करे, वे तो सर्व प्रकारका पुरुषार्थ करते हैं। क्षयोपशमका अर्थ उसमें ऐसी कोई मलिनता नहीं होती। उनका क्षयोपशम भी दृढ होता है। चारित्रकी गति विशेष बढ गयी है। सहजरूपसे वे तो सब करते ही हैं। दृष्टि उसकी निर्मल हो ही जायगी। वर्तमान उनकी चारित्रकी भूमिका विशेष है। अनेक प्रकार होते हैं। .. धारा हो तो उसे क्षायिक हो ही जायगा। क्षण-क्षणमें बाहर आये और अंतरमें जाय। ...

मुमुक्षुः- ..

समाधानः- नहीं करता है क्या, उसमें उसे पुरुषार्थ तो होता ही है। कहा न, परिणामकी गति ही ऐसी है। वह उसे कोई ... एक दृष्टिका बल और चारित्र, साधनाके