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पुरुषार्थमें सब पुरुषार्थ होता है। सर्व गुणांश सो सम्यग्दर्शन। सम्यग्दर्शन प्रगट हुआ तो सर्व गुणोंके अंश शुद्ध होते हैं। एक दृष्टिका बल है और चारित्रकी दशा है। सर्व प्रकारका पुरुषार्थ होता है। पारिणामिक द्रव्य है। पुरुषार्थकी गति अनेक प्रकारकी होती है।
मुमुक्षुः- ... तो उसमें नया पुरुषार्थ करना होता है?
समाधानः- उसमें पुरुषार्थका निमित्त होता है। जो होना होता है वह होता है, ऐसा एकान्त नहीं है। उसमें स्वभाव, काल, पुरुषार्थ सब साथमें होता है। उसमें पुरुषार्थका निमित्त होता है। पर्याय प्रगट होती है, परन्तु उसमें पुरुषार्थ साथमें होता है। पुरुषार्थ बिना कोई पर्याय प्रगट नहीं होती। स्वभाव, काल, पुरुषार्थ आदि सब होता है।
मुमुक्षुः- भावना और वैसी धारणामें क्या अंतर है?
समाधानः- धारणामें तो धोख रखा है। भावना तो अंतरमें स्वयं भावपूर्वक करता है। भावना भावनामें भी फर्क होता है। भावना करता रहे कि मैं त्रिकाल शुद्ध हूँ, उसमें अंतरमें गहराईमेंसे जो भावना हुयी हो वह अलग होती है। मैं त्रिकाल शुद्ध हूँ, शुद्ध हूँ, ऐसी भावना.. गहरी अंतर्गत भावना अलग होती है। धारणामें तो रट्टा लगाता रहे वह धारणा है।
मुमुक्षुः- बारंबार उसी प्रकारके विचार, विकल्प चले वह भावना नहीं है?
समाधानः- विचार चले ऐसे नहीं, परन्तु उसे अंतरमेंसे गहराईसे होना चाहिये, वह भावना (है)। मात्र रटता रहे कि मैं त्रिकाल शुद्ध, शुद्ध ऐसे विकल्प करता रहे ऐसा नहीं। भावनामें भी विचार तो आते हैं। परन्तु अंतरमें हृदयका भेद होकर आना चाहिये। भावनाका मतलब वह है। गहराईमेंसे (होना चाहिये कि), मुझे यह विभाव नहीं चाहिये, मैं तो आत्मा हूँ, त्रिकाल शुद्ध आत्मा स्वयंसिद्ध ज्ञायक हूँ, ऐसे अंतरसे गहराईमेंसे हृदयका भेद होकर आना चाहिये। अंतरमेंसे गहराईमेंसे (होना चाहिये)।
मुमुक्षुः- ... तब ऐसा होता है कि विकल्प ... अन्दरसे कुछ-कुछ होता है, ऐसा भी दिखता है।
समाधानः- .. उसीमें आनन्द है, सब उसमें है। उसमें दृष्टिको स्थापित करके वही करने जैसा है। जितना यह ज्ञान है, उतना ही परमार्थ कल्याण है, ऐसा समयसारमें आता है। जितना यह ज्ञान है उतना ही परमार्थ कल्याण, उतना ही सत्य है, वही करने जैसा है। उसमें तू प्रीति कर, उसमें तो अनुभव कर, उसमें तू प्रीतिवंत बन, उसमेंसे उत्तम सुख प्रगट होगा। सब उसीमें है। वही करनेका है।
मुमुक्षुः- आपके आशीर्वादसे, आपकी कृपासे आगे..
समाधानः- अपूर्व आत्मा है। देव-गुरु-शास्त्र... गुरुदेवने वह सब प्रगट किया, भगवानने पूर्ण प्रगट किया, गुरुने साधना (करते हैं), शास्त्र सब बताते हैं। और वाणीमें