Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-४)

३५४ शान्तिकी धारा और ज्ञानकी ज्ञाताधारा रहती है। उपयोग परमें जाता है तो भी वह छूटता नहीं।

मुमुक्षुः- आनन्दका वेदन तो नहीं रहता।

समाधानः- आनन्दका वेदन नहीं रहता। शान्ति होती है। आनन्द जो अपूर्व आनन्द होता है वह निर्विकल्प दशामें होता है। सविकल्प दशामें शान्ति रहती है। शान्ति- समाधि और ज्ञाताकी धारा रहती है।

मुमुक्षुः- निराकूलता रहती है?

समाधानः- हाँ, निराकूलता रहती है और शान्ति, आंशिक शान्तिका परिणमन (होता है)। आंशिक स्वरूपाचरण चारित्र प्रगट हुआ न, इसलिये शान्तिकी धारा रहती है।

मुमुक्षुः- द्रव्यका ही अशुद्ध-अशुद्ध परिणमन पर्यायकी अपेक्षासे होता है। तो उसी समय द्रव्य-गुणकी अपेक्षासे नित्य शुद्ध एकरूप ही रहता है?

समाधानः- अशुद्ध परिणाम तो.. पर्यायकी अपेक्षासे अशुद्धता रहती है न। और शुद्धता.. क्या कहा? वह तो नित्य है, एकरूप है। पर्यायकी अपेक्षासे अनित्य है।

मुमुक्षुः- तो उसीको अपरिणामी द्रव्य कहते हैं?

समाधानः- अपरिणामी द्रव्य? द्रव्यकी अपेक्षासे अपरिणामी कहनेमें आता है, वह तो एकरूप रहता है उसको अपरिणामी कहते हैं। उसमें फेरफार नहीं होता, इसलिये अपरिणामी। द्रव्य और गुण एक समान रहते हैं इसलिये अपरिणामी।

मुमुक्षुः- तो ये ध्रुव शुद्ध द्रव्यदृष्टिका विषय बनता है या दूसरा प्रमाणवाला द्रव्य?

समाधानः- नहीं, वह ध्रुव द्रव्यदृष्टिका विषय बनता है। अनादिअनन्त है वह द्रव्यदृष्टिका विषय बनता है। अनादिअनन्त पारिणामिकभाव है न। वह द्रव्य और गुण ध्रुव... परमपारिणामिकभाव उसमें आ जाता है।

मुमुक्षुः- सहज स्वभाव?

समाधानः- हाँ। एकरूप रहता है। परमपारिणामिकभाव जो अनादिअनन्त है, वह द्रव्यदृष्टिका विषय है।

मुमुक्षुः- तो ये जो सामान्यचेतना भी कहते हैं?

समाधानः- हाँ, सामान्यचेतना कहते हैं।

मुमुक्षुः- सामान्यचेतना अनादिअनन्त रहती है।

समाधानः- हाँ, सामान्यचेतना रहती है। अनादिअनन्त सामान्य स्वरूप, एक स्वरूप रहती है, विशेष वह पर्यायमें फेरफार होता है।

मुमुक्षुः- ये जो चेतना अशुद्ध होती है, वह तो पर्यायवाली होती है।