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समाधानः- वह पर्यायवाली होती है।
मुमुक्षुः- सामान्यचेतना?
समाधानः- सामान्यचेतना एकसरीखी होती है। विशेषचेतनामें तो उपयोग आ जाता है न। सामान्यचेतना एकसरीखी रहती है।
मुमुक्षुः- तो ये पर्याय जो होती है तो वह द्रव्यसे होती है कि प्रत्येक गुणोंसे भी अलग-अलग होती है?
समाधानः- क्या?
मुमुक्षुः- जो पर्याय होती है न? वह द्रव्यके आधारसे होती है कि प्रत्येक गुणके आधारसे?
समाधानः- मूल तो द्रव्यका ही आधार है। और जिस गुणकी जो पर्याय होती है उसको गुणका भी आधार है। मूल आधार तो द्रव्य है। गुणका आधार भी द्रव्य है। अनन्त गुणोंका आधार द्रव्य है। मूल तो द्रव्य आधार है। परन्तु कोई अपेक्षासे द्रव्यका आधार भी है, गुणका आधार भी है। गुण भी अनादिअनन्त है, द्रव्य भी अनादिअनन्त है। कोई अपेक्षासे जिस गुणकी जो पर्याय है, ज्ञानकी पर्याय ज्ञानमेंसे, दर्शनकी दर्शनमेंसे, चारित्रकी चारत्रमेंसे इसलिये गुणका आधार है। परन्तु मूल आधार तो द्रव्य है। भेदकी अपेक्षासे गुणका आधार है। अभेद मूल एक वस्तु अनादिअनन्त एक द्रव्यका आधार है। वह तो भेदका विकल्प है। वह मूल वस्तु नहीं है। मूल वस्तु तो द्रव्य है, द्रव्यका आधार है।
मुमुक्षुः- ये जो कहा गया कि पर्याय पर्यायसे ही होती है। तो वह षटकारकसे होती है, तो वह उसकी स्वतंत्र दृष्टिसे कहा गया है?
समाधानः- पर्याय पर्यायसे, पर्याय स्वतंत्र है इसलिये।
मुमुक्षुः- इसलिये कहा गया?
समाधानः- हाँ, उस अपेक्षासे ऐसा भी कहनेमें आता है। वह अपेक्षा दूसरी है। पर्यायके कारक पर्यायमें हैं, द्रव्यके कारक पर्यायमें.. वह स्वतंत्र अपेक्षासे कहनेमें आता है। परन्तु जितना द्रव्य स्वतंत्र है, एक द्रव्यसे दूसरा द्रव्य स्वतंत्र परिणामी रहता है, उतनी स्वतंत्रता पर्यायकी (नहीैं है)। पर्याय स्वतंत्र है, तो भी पर्यायको द्रव्यका आधार होता है। पर्यायको द्रव्यका आधार होता है। परन्तु द्रव्यको किसीका आधार नहीं होता। द्रव्यकी स्वतंत्रता दूसरे प्रकारकी है। द्रव्य तो निरपेक्ष है। उसके जो षटकारक कहनेमें आये वह दूसरी अपेक्षा है, पर्यायकी अपेक्षा दूसरी है। परन्तु पर्याय स्वतंत्र है वह बात बतानेके लिये पर्याय स्वतंत्र है। पर्यायके षटकारक पर्यायमें है, वह बात कहनेमें आती है।