Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-४)

३५८ सही उलझन हो तो अन्दरका मार्ग स्वयं ही कर लेता है। बाहर जैसे कोई उलझन हो तो उसका रास्ता जैसा निकालता है, ऐसे अंतरमें यदि सच्ची उलझन हो तो अंतर्भेद होकर अन्दर उलझन हो तो स्वयंका आधार स्वयं ही ले लेता है। अन्दर स्वयंके ज्ञायकक आश्रय स्वयं ही ले लेता है। ऐसा कहते थे।

अन्दरकी सच्ची उलझन हो तो अन्दरसे स्वयं ही आधार लिये बिना रहे नहीं और वह नहीं हो तबतक, भावना गहरी न हो तो भावना भले ऊपरसे हो तो भी सच्चा तो गहराईसे भावना करनी वही करना है। अन्दरसे प्रगट करना है। परन्तु वह प्रगट न हो तो आचार्यदेव समयसारमें कहते हैं कि हम ऊपर-ऊपर जानेको कहते हैैं, शुद्ध भूमिकामें अर्थात तू तीसरी भूमिकामें जा। इसलिये ऐसा नहीं कहते हैं कि तू नीचे ऊतर। नीचे-नीचे गिरनेको कहाँ कहते हैं, तू नीचे क्यों गिर रहा है? नीचे-नीचे क्यों गिर रहा है, ऐसा आचार्यदेव कहते हैं। हम तो तीसरी भूमिकामें जानेको कहते हैं। अर्थात जो प्रतिक्रमण, अप्रतिक्रमण.. उसे हमने अमृतकुंभ जो तीसरी भूमिका कही, और शुभकी भूमिकाको हम विषकुंभ कही तो शुभकी भूमिका छोडकर अशुभमें जा ऐसा हम नहीं कहते हैं। तीसरी भूमिकामें जा। दोनों कोटिका (उल्लंघन करके) तीसरी कोटिमें जा। ऐसा जानेका कहते हैं। और वह न हो तबतक तू वहाँ खडा रह। परन्तु तेरी दृष्टि तो तू तेरे शुद्धात्मा पर रखना। मेरा चैतन्यदेव कैसे प्रगट हो? ऐसे।

इसलिये ऐसा कहा कि मन्दिरके द्वार बन्द हो तो मन्दिरके पास तू टहेल लगाना, टहेल लगाना मत छोडना। तेरेसे आगे न बढा जाय तो तेरी भावना गहराईसे न हो तो अमुक प्रकारसे तेरी भावना मन्द-मन्द पुरुषार्थकी हो तो मन्दिर आगे टहेल लगाता रह। द्वार नहीं खूल रहे हैं, अब छोड दूँ, ऐसे छोडना मत।

ऐसे चैतन्यदेव अन्दरसे प्रगट हो तो अन्दर तू टहेल लगाना छोडना मत कि मैं ज्ञायक हूँ। अंतर गहराईमेंसे तुझे ज्ञायककी पहिचान न हो तो भी तुझे भावना अमुक प्रकारसे मन्द-मन्द होती हो तो भी तू टहेल लगाना छोडना मत। चैतन्य भगवानके द्वार पर टहेल मारता रह, उसे छोडकर अशुभमें जानेको आचार्यदेव नहीं कहते हैं। तीसरी भूमिकामें जानेको कहते हैं। वह न जाना हो तो तू चैतन्यभगवानके द्वार पर टहेल लगाता हुआ खडा रहना, उसे छोडना मत। थकना नहीं, ऐसा कहा। टहेल लगाता रह।

मन्दिरके द्वारा टहेल लगाता रह भगवानके आगे, तेरी खरी भावना होगी तो मन्दिरके द्वार (खूल जायेंगे)। इस चैतन्यके द्वार पर तू टहेल लगा तो कभी तो प्रगट होनेका तेरा पुरुषार्थ अन्दर जानेका अवकाश है। परन्तु यदि वहाँसे थककर कहीं और जगह गया-नीचे गया तो फिर कोई अवकाश नहीं है।