Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi). Track: 188.

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अमृत वाणी (भाग-४)

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ट्रेक-१८८ (audio) (View topics)

मुमुक्षुः- बहिन! उनका कहना है कि हम गृहस्थाश्रममें कर सकते हैं?

समाधानः- आत्माकी रुचि तो कर सकते हैं न। अन्दर रुचि रहनी चाहिये कि आत्माका कैसे हो? वांचन, विचार ऐसा तो हो सकता है। दूसरा विशेष करना हो तो अन्दरकी लगन लगानी। जो करना हो वह हो सकता है। प्रथम मूल नींव तो सम्यग्दर्शनका है। सम्यग्दर्शन कैसे प्रगट हो, पहले तो वह करने जैसा है। इसमें बाहरसे करना है (ऐसा तो है नहीं)। अंतर दृष्टि करने जैसी है वह करने जैसा है। सम्यग्दर्शन कैसे हो? अनादिसे वह प्रगट नहीं हुआ है, दूसरा सब हो चूका है। बाहरका सब प्राप्त हो चूका है, एक सम्यग्दर्शन प्राप्त नहीं हुआ है। उसकी तैयारी तो गृहस्थाश्रममें हो सकती है। उसका तत्त्व विचार, वांचन, शास्त्र अभ्यास, आत्मा तत्त्व भिन्न है उसकी प्रतीत, दृढता कैसे हो वह सब करना। वह सब तो गृहस्थाश्रममें हो सकता है।

मुमुक्षुः- ये तो मुंबईकी प्रवृत्तिमें..

समाधानः- प्रवृत्तिमें ऐसा हो जाय और उसमें भी मुंबईकी प्रवृत्तिमें अन्दर आत्माको पहिचानना, उस प्रवृत्तिमें कितना समय व्यतीत हो जाय उसमेंसे समय खोजना मुश्किल पडे ऐसा है। लेकिन उसमेंसे समय बचाकर कुछ विचार, कुछ वांचन, मन्दिर जाना आदि... पार्ला रहो वहाँ मन्दिर (नहीं है)। .. अनेक जातके विकल्प रहे।

मुमुक्षुः- यहाँ सुचारुरूपसे रुचि रहती है, वह मुंबईमें नहीं हो सकता।

समाधानः- प्रवृत्तिकी जाल सब दिमागमें आ जाय। ये तो गुरुदेवकी साधनाभूमि है और सब शान्ति (है)। तत्त्वविचारका माहोल है। यहाँ दूसरी बात है। विचार, वांचन, कुछ आना-जाना रखे तो हो।

मुुमुक्षुः- मति-श्रुतको मर्यादामें लानेकी बात की और दृष्टि, उस मति-श्रुत और दृष्टिमें कुछ अंतर है?

समाधानः- मति-श्रुत है वह तो ज्ञानका उपयोग है। दृष्टि है वह सम्यग्दर्शनकी पर्याय है।

मुमुक्षुः- श्रद्धाकी?

समाधानः- हाँ, वह श्रद्धाकी पर्याय है। मति-श्रुतका उपयोग जो बाहर जाता