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... उसका रस अंतरमेंसे ऊतर जाय और स्वभावकी महिमा प्रगट हो। स्वभाव कैसे पहचानमें आये? उस जातका यथार्थ ज्ञान, यथार्थ समझन, यथार्थ विरक्ति, यथार्थ चारित्र अंतरमेंसे यथार्थ कैसे प्रगट हो? ये तो अभी भावनारूपसे ... ग्रहण किया उसमें यथार्थता कैसे प्रगट हो? यथार्थ त्यागस्वरूप आत्मा, यथार्थ ज्ञान, यथार्थ दर्शन, यथार्थ चारित्र कैसे प्रगट हो? जो गुरुदेवने बताया वह मार्ग ग्रहण करने जैसा है। उसकी वृद्धि कैसे हो?
.. तत्त्वविचार, मूल रहस्य क्या? आचार्य, गुरुदेव क्या मार्ग बताते हैं, उसका विचार करना, उसका वांचन करना, आत्माकी महिमा करना और देव-गुरु-शास्त्रने जो प्रगट किया है, शास्त्र जो बताते हैं, उन सबका विचार करना। मार्ग तो.. पहले तो मार्गका यथार्थ ज्ञान करना कि मार्ग कैसा है, ऐसे। ज्ञान करनेके बाद उसका भेदज्ञान करना, उसकी प्रतीत करना, लीनता करनी। भीतरमें जो जाननेवाला जो है वह आत्मा है। ये शरीर कुछ जानता नहीं। विकल्प आता है, वह भी कुछ जानते नहीं, जाननेवाला भीतरमें अलग है-भिन्न है, उसको पहचानना। भेदज्ञान करना। मैं स्फटिक जैसा निर्मल अनादिअनन्त आत्मा हूँ।
मुमुक्षुः- भेदज्ञान करनेके लिये, मतलब युग ऐसा है कि हर चीज बढ गयी है, हर जगह पर अशान्ति है। तो क्या मन्दिरमें ही हो सकता है? मन्दिरमें बैठकर ही कर सकते हैं?
समाधानः- नहीं, मन्दिरमें हो सकता है ऐसा नहीं है। उसका सच्चा ज्ञान करनेसे होता है। मन्दिर तो शुभभाव करनेका, देव-गुरु-शास्त्र.. जब आत्माकी पहचान नहीं होती है, तो देव-गुरु-शास्त्रकी महिमा आती है, मन्दिरमें जाता है, तो मन्दिरसे नहीं होता है। उसका सच्चा ज्ञान करनेसे होता है। उसका विचार करना, तत्त्व विचार करना, मूल वस्तु क्या है? उसका विचार करनेसे, उसकी लगन लगाये, उसकी महिमा करे, जिज्ञासा करे। विभावमें कुछ नहीं है, मेरे आत्मस्वभावमें सबकुछ है। ऐसी प्रतीत करनेसे, ऐसा विचार करनेसे होता है।
मुमुक्षुः- हमारा ध्यान तो पल-पलमें टूटता है। जैसे अभी बिजली गूल हो जाय, पंखा बन्द हो जाय तो हमारा..
समाधानः- लगन होनेसे होता है। बाहर लक्ष्य जानेसे नहीं होता है। लगन लगानी चाहिये। जैसे विभावकी लगन है, वैसे आत्माकी लगन लगानी चाहिये। परमें उपयोग जाता है, वैसे स्वमें उपयोग लगाना चाहिये। तो हो सकता है। भेदज्ञान करनेसे होता है।
मुमुक्षुः- निश्चयमें कैसे कूदना? व्यवहारको पकडने जाय तो व्यवहार ही पकडमें रहता है। निश्चयकी आराधना करने जाते हैं तो शुष्कता हो जाती है।