Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-५)

१६

मुमुक्षुः- बहुत भेद न पडे, परन्तु अभेद ही मुख्य है न?

समाधानः- ग्रहण अभेदको करनेका है। ग्रहण तो एक आत्माको (करना है)। भेद परसे दृष्टि उठा ले। ग्रहण करे एक अभेदको। परन्तु उसका ज्ञान बीचमें आ जाता है। भेद पर दृष्टि नहीं रखनी है। दृष्टि एक अभेद पर कर। बाकी सबका ज्ञान कर। दृष्टि एक अभेद पर कर। दृष्टि उसमें स्थापित की इसलिये उसमेंसे शुद्ध पर्याय प्रगट होगी, स्वयं प्रगट होगी। पहले तू यथार्थ निश्चय कर कि यह ज्ञानस्वरूप आत्मा है वही मैं हूँ। ऐसे निश्चय कर उसका और यथार्थ दृष्टि प्रगट कर। दृष्टि मुख्य है, परन्तु ज्ञान साथमें आता है। भेद परसे दृष्टि उठा ले, दृष्टि एक आत्मा पर कर।

मुमुक्षुः- .. उसके पहले ज्ञानसे आत्माके स्वरूपको भेदपूर्वक विचारता है कि मैं ऐसा ज्ञान सामर्थ्यका पिण्ड हूँ, ऐसे सुख सामर्थ्यका पिण्ड हूँ, ऐसी प्रभुता .. हूँ।

समाधानः- उसके विचारमें ऐसा निश्चय बीचमें आये बिना नहीं रहता। निश्चय किये बिना... वह बीचमें आता है। भेदके विचार (आते हैं), परन्तु दृष्टि एक अभेद पर करनी है। दृष्टि अभेद पर गयी और उसमें लीन हुआ तो विकल्प छूट जाता है। तो उसमेंसे उसे स्वानुभूति प्रगट होती है। परन्तु पहले वह निश्चय करे तब भेदके विकल्प आते हैं।

मुमुक्षुः- .. भेदके ग्रहणपूर्वक ही उसे यथार्थ निश्चय होता है और फिर भेदको छोडकर अभेदको ग्रहण करता है?

समाधानः- अभेदको ग्रहण करता है। (बीचमें) व्यवहार आये बिना रहता नहीं। विकल्प द्वारा नक्की करके फिर मति-श्रुतकी बुद्धिओंको समेटकर स्वयं निर्विकल्प होता है। ऐसा गाथामें आता है, उसकी टीकामें। .. है उसे थोडा-थोडा जवाब देती हूँ। उस प्रश्नके जवाब लगभग कैसेटोमें वही आये हैं। वही होता है। कैसे करना? क्या करना? वही प्रश्न बहुभाग सबके होते हैं।

.. बहुत सुननेका है। बिना पूछे कितने ही ऊतारकर ले गये हैैं। मुझे तो मालूम नहीं है, कौन ऊतारकर ले गया है। पीछेसे बोलूँ उसे ऊतारा है। पहले मैं वांचन करती थी, उसकी तो मैं स्पष्ट ना कहती थी। किसीने ऊतारा नहीं है। बहुत समय बाद ऊतारा तो ऐसे ढककर ऊतारा। अभी भी सभी बहनोंको ऊतारनेकी ना ही कहती हूँ। सब बहनें नहीं ऊतारती है। सब बहनें नहीं ऊतारती। यहाँ कोई लेकर बैठा होता है। बाकी सब बहनें नहीं ऊतारती है। सबके पास नहीं है।

... अकेली बैठी होऊँ तब धूनमें कुछ बोलना होता है। शास्त्रके अर्थमें कुछ धूनमें ही धूनमें उस दिन बोलती थी। विकल्प तुम भाग जाओ ऐसा सब। अब सब जाईये, ऐसा सब बोलती थी। शास्त्रके साथ कोई मेल नहीं हो, ऐसा कुछ बोलती हूँ।