Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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मुमुक्षुः- वही शास्त्र है, उससे ऊच्च शास्त्र कौन-सा होगा? मस्तीकी तो सबसे ज्यादा कीमत है न।

समाधानः- तन-मन-धन। गुरुदेवके चरणमें मन-विकल्पको छोड दिये। गुरुदेवके चरणमें अब तुम्हारा यहाँ स्थान नहीं है, मैं तो ज्ञायक हूँ। विकल्प गुरुदेवके चरणमें रख दिये। अब चले जाओ। गुरुके चरणमें.. उसका अर्थ कोई पूछे कि गुरुदेवके चरणमें विकल्प, वह क्या? वह तो भावमें ही बोलना होता है। गुरुदेवको कहाँ विकल्प चाहिये? और किसीको कहाँ चाहिये?

मुमुक्षुः- शब्दोंके अर्थ करने जाय तो तकरार हो जाय।

समाधानः- ऐसा ही है। ज्ञायकमें विकल्प नहीं है। मेरे हृदयमें एक ज्ञायक है। विकल्प अब चले जाओ, मुझे नहीं चाहिये। विकल्पको खडे रहनेका स्थान नहीं रहता है। या ज्ञायक या गुरु। मेरे हृदयमें गुरु हैं। दूसरा कोई स्थान नहीं है। तुम अब चले जाओ। तन तो गुरुदेवके चरणमें, मन कैसे? विकल्प जाओ, अब मेरे गुरुदेवके चरणोंमें जाओ, ऐसा सब बोलती थी। ऐसा हो कि यह सब ऊतारकर उसका अर्थ क्या करना? ऐसा हो जाता है कोई बार।

मुमुक्षुः- अपने कहाँ अर्थ करके समझ लेना है?

समाधानः- चले गये। ... सब ठीक करके देना पडे न। सब भिन्न-भिन्न हो उसे एकट्ठा करके देना पडे।

मुमुक्षुः- अच्छा आता है।

मुमुक्षुः- किस प्रकार..

समाधानः- शुद्धात्मा, ऐसा है न?

मुमुक्षुः- शिर्षक ऐसा है।

समाधानः- ध्रुव अनादिअनन्त है। ध्रुव है वह तो शुद्ध ही है, शुद्धात्मा शुद्ध है। बाकी शब्दोंका मेल तो शास्त्र... प्रवचनसारमें बहुत जगह ज्ञान अपेक्षासे कहते हैं, कोई जगह दृष्टि अपेक्षासे कहते हैं। दृष्टि और ज्ञानमें साथमें होते हैं। वहाँ दो द्रव्यको भिन्न किया और यहाँ दृष्टि और ज्ञान साथमें रखे। स्वधर्मसे एकत्व स्वयंसे और परसे भिन्न है-विभक्त। परधर्मसे भिन्न और स्वधर्ममें एकत्व। अपनेमें एक है इसलिये शुद्ध है। इसलिये वह उपलब्ध करने योग्य है। वह ध्रुव है। इसलिये दृष्टि तो तू ऐसी कर। और परसे भिन्न इसलिये उसमें ज्ञान साथमें आया, दृष्टि साथमें आती है। इसलिये दृष्टि और ज्ञान साथमें रखते हैं।

आचार्यदेव बहुत जगह दृष्टि मुख्य करके ज्ञानको साथमेंं रखते हैं। और ज्ञानका विषय हो तो यहाँ दृष्टि और ज्ञान दोनों साथमें रखे। इसलिये ऐसा लगे कि यह दृष्टि