Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 1251 of 1906

 

अमृत वाणी (भाग-५)

१८ है या ज्ञान है? कोई जगह दृष्टि और ज्ञान दोनोंकी साथमें बात करते हैं। ध्रुवत्वके कारण वह उपलब्ध करने योग्य है। वह एक है, परसे भिन्न है। परधर्मसे भिन्न और स्वधर्मसे एकत्व है। यह विभाव है, उससे तू भिन्न कर। स्वधर्ममें एक है, अपनेमें एक है, ध्रुव है, ऐसा कहकर यहाँ दृष्टि साबित करते हैं कि तू अपनी ओर देख। और परसे भिन्न होता है इसलिये उसमें ज्ञान भी साथमें आ जाता है।

मुमुक्षुः- दोनों बात..

समाधानः- दोनों बात एकमें आ जाती है। तू दृष्टि यथार्थ कर, उसके साथ ज्ञान भी साथमें आ जाता है। परसे भिन्न और स्वमें तू एकत्व है। अपनेमें एकत्व साबित करता है। तू दृष्टिको मुख्य कर। ज्ञान साथमें रखता है। .. ज्ञानको गौण करते हैं और यहाँ प्रवचनसारमें बहुत जगह दृष्टि-ज्ञान साथमें होते हैं। ऐसा है। कमर कसी है, ऐसा सब आता है। उसी गाथामें कहीं पर आता है। प्रवचनसारमेें आगे आ गया है। ८०वीं गाथामें ऐसा आया कि यह द्रव्य है, गुण है, पर्याय है। ऐसा मनसे नक्की करके फिर स्वयंमें संक्षेप करके विकल्पको तोड दे। कर्ता-कर्मका विभाग विलय हो जाता है और स्वयं अपनेमें एकत्व हो जाय, निर्विकल्प हो जाय। उसमें ऐसे लिया है। उसमें दृष्टि और ज्ञान दोनों साथमें ले लिया कि ऐसी दृष्टि कर। फिर ज्ञानसे नक्की करता है। विकल्प तोडकर अपनेमें लीन हो जाता है।

मुमुक्षुः- एक ही गाथामें दो बात ली है।

समाधानः- हाँ, एक गाथामें दो बात ली है।

मुमुक्षुः- यथार्थ निर्णय होता है, अनुभव पूर्व यथार्थ निर्णय होता है और उस यथार्थ निर्णयमें एक धारणारूप निर्णय होता है और एक भावभासनरूप निर्णय होता है। सविकल्प दशाकी बात करता हूँ। धारणारूप निर्णयमें तो केवल शास्त्रसे, आगमसे उसने नक्की किया होता है कि आत्मा ऐसा है, आत्मा ऐसा है। और भावभासनरूप निर्णयमें तो अंतर सन्मुख झुककर लक्षणसे कुछ आभास होता हो कि ऐसा ज्ञानमय आत्मा अन्दरमें है और वह मैं हूँ। उस निर्णयका फल, उस निर्णयके बाद आगे बढने पर उस निर्णयका अभाव होकर निर्विकल्पता हो, वह बराबर है?

समाधानः- भावभासनका निर्णय यथार्थ हो तो उस निर्णयकी विशेष दृढता वह परिणतिरूप हो तो निर्विकल्प दशा होती है। सहजरूपसे हो तो निर्विकल्प दशा हो।

मुमुक्षुः- परिणतिरूप होनेमें तो केवल अभ्यास ही मुख्यरूपसे (होता है)?

समाधानः- बारंबार उसका अभ्यास करे। उसमें ज्यादा तदाकार हो जाय। भावभासन है उसे ज्यादा दृढतारूप करता जाय। ज्यादा दृढतारूप करके उस रूप परिणमता जाय तो विकल्प छूटनेका प्रसंग आवे।