Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 1279 of 1906

 

अमृत वाणी (भाग-५)

४६ शक्तिसे भरपूर है। उसमें अनन्त ज्ञान भरा है, अनन्त आनन्द भरा है। अनन्त-अनन्त शक्तियोंसे भरा आत्मा है। उस पर दृष्टि जाय तो उसमें जो अनन्त शक्तियाँ हैं, वह प्रगट होती हैं। वह अपना स्वभाव ही है। सहज ज्ञानसे भरा आत्मा है। उस पर दृष्टि करके उसमें लीनता करे तो उसमेंसे सब प्रगट होता है। .. ग्रहण करना वह वास्तविक है। उसीमें अनन्त शक्तियाँ भरी हैं। आनन्द कहीं बाहरसे प्रगट नहीं होता, अपनेमें- ही प्रगट होता है।

मुमुक्षुः- ... दिन-प्रतिदिन वर्धमान होती जाती है, वैसे बाह्य ज्ञान भी दिन- प्रतिदिन .. होगी न?

समाधानः- बाह्य ज्ञान.. अन्दरकी ज्ञायककी उग्रता। ज्ञायककी निर्मलता, ज्ञायककी धारा, अंतरमें-से निर्मल स्वानुभूतिकी धारा, ज्ञायककी निर्मल धारा,... बाहरका ज्ञान यानी...

मुमुक्षुः- बाहरका ज्ञान तो क्षयोपशमिक ज्ञान है।

समाधानः- वह तो क्षयोपशमज्ञान है। बाहरका मति और श्रुत, वह भी उसका उपयोग बाहर आये तो वह भी निर्मल होता है। बाहर उपयोग हो तो वह भी निर्मल हो, अंतरमें उपयोग हो तो अंतरकी निर्मलता होती है। बहुत ज्यादा जाने ऐसा नहीं, परन्तु निर्मलता बढती जाती है।

मुमुक्षुः- .. दोषित हो जाय ऐसा नहीं? समाधानः- उपयोग बाहर जाय तो ज्ञान दोषित नहीं होता। उसमें राग आवे तो दिक्कत है। उसमें एकत्वबुद्धि हो उसकी दिक्कत है। दोषित नहीं होता, ज्ञानका जाननेका स्वभाव है। ज्ञान सब जान सकता है। ज्ञानमें ऐसी मर्यादा बांधनेकी कोई आवश्यकता नहीं है कि ज्ञान इतना जाने और इतना ज्ञान नहीं जानता। ज्ञान तो अनन्त महिमासे भरपूर है। जानना उसका नाम कि जो सब जाने। ज्ञानमें ऐसी मर्यादा न होती कि इतना जाने और इतना न जाने। ज्ञान अनन्त शक्तिसे भरा है। सब जाननेकी ज्ञानमें शक्ति है। लेकिन उसका उपयोग बाहर जाय, उसमें राग आवे, वह रागका दोष है। उसमें ज्ञानका दोष नहीं है। राग तोडनेको कहा जाता है। तू वीतरागता प्रगट कर, तेरी दिशा बदल। सहज ज्ञान अंतरमें है, वह अंतरमेंसे सब प्रगट होता है। उसमें तू लीनता कर।

प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो!