Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-५)

५४ तो आचार्यदेवने बतायी कि छठवें-सातवें गुणस्थानमें मुनिराज कुन्दकुन्दाचार्य झुलते थे। तो भी कहते हैं कि ये प्रमत्तदशा या अप्रमत्तदशा, दोनों दशासे भिन्न मैं तो एक ज्ञायक हूँ। दोनों पर्यायके भेद हैं। दृष्टि तो वहाँ करनी है।

आचार्यदेव सम्यग्दर्शनकी भूमिकासे आगे गये। चारित्रकी भूमिका, मुनिकी दशामें हैं। छठवें-सातवें गुणस्थानमें उन्हें बारंबार स्वानुभूति प्रगट होती है। निर्विकल्प दशा मुनिराजको, कुन्दकुन्दाचार्यको, जो मुनिराजोंको छठवे-सातवें गुणस्थानमें अंतर्मुहूर्त-अंतर्मुहूर्तके कालमें क्षण-क्षणमें स्वानुभूति प्रगट होती है। क्षणमें अंतरमें आये, क्षणमें बाहर आये। क्षणमें अंतरमें जाय, क्षणमें बाहर आते हैं। बाहर आये तब शुभके विचार आते हैं, या शास्त्र लिखनेका, या देवका, या गुरुका।

मुमुक्षुः- उन सबको विकल्प कहते हैं?

समाधानः- वह विकल्प हैं। बाहर आये वह विकल्प है। हाँ। जो शुभभाव आये वह विकल्प हैं। और अंतरमें विकल्प छूटकर निर्विकल्प दशा (होती है), विकल्प छूट जाय और अंतरमें निर्विकल्प दशा होती है तब कोई विकल्प नहीं रहते।

मुमुक्षुः- विकल्प है वही कर्ता है, विकल्प ही कर्म है। अमृतचन्द्राचार्यदेवने कहा है न? विकल्प कर्ता, विकल्प कर्म, एक श्लोक है।

समाधानः- विकल्प कर्ता, विकल्प कर्म, सब विकल्प है। परन्तु उस विकल्पसे छूटकर अंतरमें जाय, वहाँ उन्हें स्वानुभूति होती है। तो वह निर्विकल्प दशा है। वह निर्विकल्प दशा शून्य नहीं है। परन्तु वह अन्दर स्वभावसे लबालब भरा है।

मुमुक्षुः- वह टिकती है?

समाधानः- हाँ। वह टिके। उन्हें अंतर्मुहूर्त दशा टिकती है। फिर बाहर आते हैं। अंतर्मुहूर्त यानी अमुक क्षण टिकती है। फिर बाहर आते हैं। विकल्पमें फिर बाहर आये वहाँ शास्त्रके, गुरुके, देवके ऐसे विकल्प (आते हैं)। मुनिराजको तो ऐसे विकल्प (होते हैैं)। गृहस्थाश्रममें हो, उसे अनेक जातके विकल्प (आते हैं)। मुनिराजको तो देव-गुरु-शास्त्रका (विकल्प आता है)।

मुमुक्षुः- मुनिराजसे आगे...?

समाधानः- मुनिदशासे आगे जाय तो उसे केवलज्ञान हो जाय।

मुमुक्षुः- वह निर्विकल्प दशा।

समाधानः- बस। मुनिदशामें क्षण-क्षणमें निर्विकल्प दशा होती है। स्वानुभूति। और उस निर्विकल्प दशामें यदि टिक जाय, निर्विकल्प दशा क्षणमात्र होती है, क्षणमें बाहर आते हैं। स्वानुभूति क्षणमें हो और क्षणमें बाहर आये। तो यदि वे स्वानुभूतिमें ऐसे ही शाश्वत टिक जाय तो केवलज्ञान हो जाता है। तो पूर्ण-पूर्ण दशा पराकाष्टा (हो