Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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जाती है)। फिर उससे आगे (कोई दशा) नहीं है। पूर्ण आनन्दसागरमें डोले और केवलज्ञान प्रगट हो जाय कि जो लोकालोकका ज्ञान (करता है)। वहाँ जानने नहीं जाता, परन्तु सहज जाननेमें आ जाता है। वह दशा प्रगट होती है।

मुमुक्षुः- जो क्षण-क्षणमें विकल्पमें आये, निर्विकल्पमें चले जाय, उसे केवलज्ञान क्षणमें... जिस क्षण निर्विकल्प दशामें हो उस वक्त केवलज्ञान होता है?

समाधानः- नहीं, उस समय केवलज्ञान नहीं होता है। निर्विकल्प दशाके समय (नहीं होता)। केवलज्ञान तो जो पूर्ण वीतराग हो उसे केवलज्ञान होता है। जिसकी दशा बाहर आनेकी होती है, उसे केवलज्ञान नहीं होता। उसे मतिज्ञान, श्रुतज्ञान होता है। किसीको अवधिज्ञान, किसीको मनःपर्ययज्ञान ऐसा होता है। परन्तु केवलज्ञान तो जो वीतरागी होते हैं, उनको ही केवलज्ञान होता है।

मुमुक्षुः- तो फिर वह तो बारहवेंके बाद ही आये न?

समाधानः- बारहवें गुणस्थानके बाद केवलज्ञान होता है। परन्तु छठवें-सातवें गुणस्थानमें मुनिदशामें झुलते हों, उसमें श्रेणि लगा दे। लेकिन वह श्रेणी ऐसी होती है कि अंतर्मुहूर्तमें दो घडीमें उसे पूर्ण अनुभव हो जाता है। ये आंशिक है। मुनिको विशेष अनुभव (है)। और गृहस्थाश्रममें जो सम्यग्दृष्टि हो, जिसे सम्यग्दर्शन हो, उसे स्वानुभूति कोई-कोई बार होती है। और मुनिको क्षण-क्षणमें स्वानुभूति होती है। मुनिको जल्दी-जल्दी होती है। और गृहस्थाश्रममें सम्यग्दृष्टि हो, उसे आत्माकी स्वानुभूति होती है। जिसे सम्यग्दर्शन हो (उसे)। परन्तु उसे स्वानुभूति कभी-कभी होती है। और जो मुनि होते हैं, उनको जल्दी- जल्दी होती है। और जिसे केवलज्ञान होता है, उसे टिक जाता है।

मुमुक्षुः- गृहस्थीको जो सम्यग्दर्शन होता है, वह प्रत्यक्ष होता है कि परोक्ष होता है?

समाधानः- सम्यग्दृष्टिको? केवलज्ञानकी अपेक्षासे वह परोक्ष है, परन्तु उसका वेदन जो स्वानुभूति है, उसे वेदन तो प्रत्यक्ष है। उसे स्वानुभूति ऐसी होती है कि किसीको पूछना न पडे। उसे आत्मामें ऐसा ही होता है कि, यही स्वानुभूति है। उसे आंशिक, जो सिद्ध भगवानको पूर्ण आत्माका स्वाद, आत्माका अनुभव पूर्ण होता है, उसका अंश उसे प्रगट होता है, पूर्ण नहीं है। जैसे दूजका चन्द्रमा होता है वह पूरा होता है, परन्तु उसकी दूज उगती है। वैसे सम्यग्दृष्टिको एक अंश प्रगट होता है। आंशिक स्वानुभूति होती है। पूर्ण स्वानुभूति नहीं है। आनन्दका सागर पूर्ण हो उसमें-से उसे अंश प्रगट होता है, गृहस्थाश्रममें।

मुमुक्षुः- उस अंशको पूर्ण बनाना हो तो..

समाधानः- हाँ, तो बारंबार-बारंबार उसकी स्वानुभूति (करता है)।