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मुमुक्षुः- गृहस्थाश्रममें गिर जाय, सम्यग्दर्शनमें-से मिथ्यादर्शनी हो जाय, हो सकता है?
समाधानः- कोई हो जाता है। कोई पलट जाय, पुरुषार्थ मन्द हो जाय तो पुनः मिथ्यादर्शन हो जाय। परन्तु जिसे पुरुषार्थ एकदम तीव्र हो, उसे पलटता नहीं।
मुमुक्षुः- राजचन्द्रजीने कहा है कि एक बार यदि सम्यग्दर्शन हुआ तो वह गिरता नहीं।
समाधानः- हाँ, बहुभाग नहीं गिरता। गिरता नहीं है उसका अर्थ क्या?
मुमुक्षुः- उसे पंद्रह भवमें जाना ही पडे।
समाधानः- एकबार जिसे सम्यग्दर्शन होता है, वह पंद्रह भवमें अवश्य मोक्ष जाता है। वह गिरता नहीं है, उसके लिये। और उससे ज्यादा बार गिर जाय तो अर्ध पुदगल परावर्तन कालमें तो अवश्य मोक्षमें जाता है। एक बार जिसे सम्यग्दर्शन होता है वह। इसलिये वह तो अर्ध पुदगल परावर्तन। और जो नहीं गिरता है, वह पंद्रह भवमें जाता है। और जो गिर जाता है अर्ध पुद्गलपरावर्तनें, फिरसे उसे प्रगट होता है।
मुमुक्षुः- पंद्रह भव करना ही पडे, ऐसा है? दो-तीन भवमें...
समाधानः- नहीं, करना ही पडे ऐसा नहीं। उसे ज्यादा-से ज्यादा पंद्रह भव होते हैं। और उससे पुरुषार्थ अधिक चल जाय तो तीन भवमें जाय, कोई एक भवमें जाय।
मुमुक्षुः- एक भवमें जा सकता है?
समाधानः- हाँ, जा सकता है, जा सकता है। यह पंचमकाल है, इसलिये यहाँ केवलज्ञान अभी नहीं है। इसलिये एक भव देवका करके, फिर मनुष्यका भव होकर फिर मोक्षमें जाय। और यहाँ जब महावीर भगवानके समयका चतुर्थ काल था, उस वक्त तो उसी भवमें भी होता था। लेकिन अभी यह ऐसा दुषमकाल है। स्वयं पुरुषार्थ उतना उत्पन्न नहीं कर सकता है।
मुमुक्षुः- दुषमकालमें धर्मध्यान या शुक्लध्यान नहीं हो सकता।
समाधानः- नहीं, धर्मध्यान हो सकता है, शुक्लध्यान नहीं होता।
मुमुक्षुः- नहीं होता?
समाधानः- शुक्लध्यान नहीं होता। धर्मध्यान होता है। सम्यग्दर्शन हो, मुनिदशा हो, परन्तु केवलज्ञान नहीं होता। अभी शुक्लध्यान नहीं है।
मुमुक्षुः- शुक्लध्यान केवलज्ञानीको ही होता है?
समाधानः- हाँ, जिसे केवलज्ञान प्रगट हो...
मुमुक्षुः- मुनिको नहीं होता?