मुमुक्षुः- आज सीमंधर भगवानका जन्मकल्याण दिवस है? हमारे एक भाई ऐसा कहते थे। जन्म कल्याणक नहीं, केवलज्ञान कल्याणक।
समाधानः- शास्त्रमें सीमंधर भगवानका केवल कल्याणक या ऐसा कुछ नहीं आता है।
मुमुक्षुः- वह भाई तो श्वेतांबर थे।
समाधानः- होगा उनके हिसाबले। लेकिन यहाँका सब अलग है। .. नारदने वहाँ जाकर भगवानका जन्म कल्याणक देखा, भगवानका केवल कल्याणक देखा। नारदने देखा ऐसा आता है, परन्तु उसका दिन कौन-सा ऐसा नहीं आता है। नारदजी यहाँ-से सीमंधर भगवानके पास गये थे और यहाँ आकर बात करते हैं कि मैंने सीमंधर भगवानका जन्म कल्याणक या केवल कल्याणक देखा। ऐसा कहते हैं आकर। उसमें आता है।
फिर वहाँ महाविदेह क्षेत्रमें बडे-बडे मन्दिर हैं। भगवानका मैंने कल्याणक देखा, ऐसा आकर कहते हैं। मनुष्यके हिसाबसे मन्दिर बडे होते हैं। पाँचसौ धनुषका हो उससे मनुष्य कम होते हैं, परन्तु होते तो हैं न। सब नापकी बात है। लेकिन मनुष्य बडेे होते हैं।
समाधानः- ... संयोग है, सब लेकर आये थे। इसलिये उन्हें तो संस्कार जागृत हो गये। जो था वह प्रगट किया। .. दीक्षा यहाँ ली, लेकिन बदल गया कि यह मार्ग सच्चा नहीं है। अन्दरसे विचार स्फूरे। कोई कुछ जानता नहीं था। अकेली क्रिया ही थी। और दिगम्बरोंमें भी मार्ग (होने पर भी) दृष्टि तो ऐसी क्रियामें (थी)।
मुमुक्षुः- सौराष्ट्रमें तो दिगंबरका तो बहुत कम स्थान है।
समाधानः- दिगंबरका नाम भी किसीने सुना नहीं था। कुछ नहीं। स्वप्न भी आया था कि मैं राजकुमार हूँ। दीक्षा लेनेके बाद। शरीर कोई अलग ही है। स्वप्न बराबर उन्हें हूबहू (आता था)। इस भवका शरीर नहीं, शरीर अलग ही था, ऐसा कहा था। बडा शरीर था।
मुमुक्षुः- ... पक्का हो गया। गुरुदेव..
समाधानः- तीर्थंकर हूँ, तीर्थंकर होनेवाला हूँ, ऐसा अंतरमें-से (आता था)। ऐसी प्रतीत आती थी।
मुमुक्षुः- ऐसी प्रतीत आती हो तो अपने द्रव्यके कारण ऐसा ख्याल आता होगा?
समाधानः- अपना द्रव्य ऐसा है, इसलिये अंतरमें-से प्रतीत होती थी। सुना हो वह तो बराबर है, लेकिन अन्दरसे निज द्रव्यकी ऐसी योग्यता है इसलिये प्रतीत आती थी। .. प्रतीत अंतरमें कब हो? कि अपनी योग्यता अन्दर साथमें है, इसलिये प्रतीत आती है।प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो!