७४ ऐसा जो एकदम अनाजने हैं, वह पूछते हैैं।
गुरुदेवने सत क्या? वह तो एकदम स्पष्ट करके बताया है कि किस मार्ग पर जाना है। फिर पुरुषार्थ करना ही बाकी रहता है। बाकी मार्ग तो एकदम स्पष्ट करके बता दिया है। विभाव तेरा स्वभाव नहीं है। द्रव्य, गुण, पर्याय उसके भेद पर भी दृष्टि मत कर। अखण्ड पर दृष्टि कर। एकदम सूक्ष्मतासूक्ष्म करके मूल तक जाकर सब समझा दिया है, गुरुदेवने।
मुमुक्षुः- ..
समाधानः- सबको भगवान कहते थे। अरे..! भगवान! भगवान कहते थे। तू मूल शक्तिसे तो भगवान है। आज टेपमें भी (आया था)। ... कोई भेद नहीं दिखता।
.. विराजते थे तब बढता ही जाता था। और अभी भी उनकी प्रभा ऐसी ही वर्धमान हो रही है।
मुमुक्षुः- आपके आशीर्वाद है, ऐसे ही होगा।
मुमुक्षुः- असल मानस्तंभ कैसा होगा समवसरणमें?
समाधानः- उस मानस्तंभकी क्या बात करनी?
मुमुक्षुः- विचार आया कि कुछ जानने मिले तो।
समाधानः- अनेक जातके मानस्तंभ होते हैैं। इन्द्र द्वारा रचित, उस मानस्तंभको देखकर मान गल जाता है। जो रत्न और अनेक जातके...
मुमुक्षुः- पूरा मानस्तंभ रत्नका?
समाधानः- विविध रत्नों द्वारा रचित है।
मुमुक्षुः- चौमुखी प्रतिमाजी जैसी हम लोगोंने यहाँ रखी हैं, वैसे ही ऊपर-नीचे (होती हैं)?
समाधानः- उसमें तो अनेक जातकी रचना होती है, मानस्तंभमें। इतनी छोटी जगह हो, उतनेमें पूजा कर सके, भगवानको इतने छोटे देवालयमें विराजमान करना पडे ऐसा नहीं होता। उसकी रचना कोई अलग जातकी होती है। सब यहाँ आकर पूजा करते हैं।
मुमुक्षुः- ये तो बहुत छोटी प्रतिकृति है।
समाधानः- हाँ, छोटा है न।
मुमुक्षुः- वह तो योजनोंके विस्तारमें होगा।
समाधानः- हाँ, सब योजनमें होता है, विशाल है। समवसरण कितना है, उसका मानस्तंभ वैसा होता है। ऊँचा उतना होता है, चौडा उतना होता है। उसका सब नाप आता है।