समाधानः- ... लेकिन इतना गुरुदेवका उपदेश मिला, स्वयं विचार करे कि ये कुछ अपूर्व है, ऐसा बुद्धिपूर्वक भी विचारमें लगे तो उसे अप्रगट है कि नहीं, यह विचारनेका या ढूंढनेका कोई अवकाश ही नहीं रहता है। अपनी बुद्धिमें ऐसा आता हो कि यह कुछ अपूर्व है, ऐसा स्वयंको हृदयमें लगता हो।
मुमुक्षुः- प्रगटमें लगता हो तो फिर अप्रगटमें है ही।
समाधानः- अप्रगटमें सहज ही आता है।
मुमुक्षुः- किस ... उपादान ..
समाधानः- उपादान कारण है, ध्रुव स्वयं उपादान है। मूल वस्तु उपादान है। उसका आधार द्रव्य कहते हैं और ऐसे आधार कहते हैं। गुण-पर्यायसे आत्मा पहचाननेमें आता है। पुनः उसे साधन बताया। आज प्रवचनमें आया था। मूल उपादान तो वस्तु स्वयं है। लेकिन ये तो उससे पहचानमें आता है, पर्याय द्वारा पहचानमें आता है। द्रव्य और गुण पहचानमें आते हैं। गुण द्वारा द्रव्य पहचानमें आता है। इसलिये उसे साधन कहा। मूल वस्तु तो अनादि अनन्त शाश्वत है। द्रव्य और गुण दोनों शाश्वत है।
बाहरमें उपयोग जाता है, लौकिकमें जाता है वहाँ-से थोडा-सा अन्दरमें जाये। अनादिका जो संस्कार है वहाँ भाग जाता है, यहाँ टिकता नहीं। इसलिये बारंबार- बारंबार उसका विचार, वांचन अन्दर बारंबार दृढता करती रहनी। रुचि बढानी, सत्संग हो तो सत्संगसे समझना। बारंबार करना। अनादि कालसे महा मुश्किलसे यह मनुष्यभव मिलता है। तो यह मनुष्यभव तो आत्माका कैसे हो, यहाँ आत्माको पहचाना हो तो उसे भवका अभाव होता है। भवका अभाव नहीं हो, वह तो सम्यग्दर्शन प्राप्त हो तो होता है। परन्तु उसके लिये तैयारीमें जिज्ञासा, भावना, आत्माक कैसे पहचानमें आये, यह शरीर भिन्न, आत्मा भिन्न, दोनों वस्तु ही भिन्न हैं। दोनों तत्त्व भिन्न ही हैं। लेकिन उसे विचार करके नक्की करे।
अन्दर विकल्प होते हैं, वह भी स्वयंका स्वभाव नहीं है। उससे भी आत्मा भिन्न है। सिद्ध भगवान जैसा आत्मा ज्ञानानन्दसे भरा कोई अनुपम तत्त्व है। उसकी महिमा