मुमुक्षुः- वह वीर्यका काम।
समाधानः- हाँ, तेरा पुरुषार्थ बदल। पुरुषार्थ तेरा बाहर है, उसे अंतरमें ला।
मुमुक्षुः- ... अनन्त कालको जानना वह तो स्वभाव ही है। उसकी बात करनेमें क्या दिक्कत है?
समाधानः- बात करनेमें माने?
मुमुक्षुः- जातिस्मरणज्ञान।
समाधानः- स्वभाव ही है। वह तो द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावके संयोग अनुसार बात की जाती है। बातके साथ कोई सम्बन्ध नहीं है। स्वभाव है इसलिये बात करनी चाहिये, नहीं करनी चाहिये, उसके साथ सम्बन्ध नहीं है। द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावके संयोगके साथ सम्बन्ध है।
मुमुक्षुः- गुरुदेव ऐसा फरमाते थे कि जातिस्मरण होने पर वैराग्यमें उग्रता आ जाती थी, वह कैसे?
समाधानः- जीवने ऐसे जन्म-मरण किये हैं। वह बात स्मरणमें आये, वह वैराग्यका कारण बनती है। उसे प्रतीतमें हो, लेकिन ज्यादा ख्यालमें आनेपर वैराग्यका कारण बनता है। शास्त्रोंमें भी आता है कि, जातिस्मरण वैराग्यका कारण होता है। प्रवृत्तिके कारण दिखे तो न भी कहनेमें आये, उसे बातके साथ सम्बन्ध नहीं है।
... अनेक कारण आते हैं न? उसमें एक जातिस्मरण भी वैराग्यका कारण आता है। सम्यग्दर्शन होनेके कारण आते हैं। देव, ऋद्धि, जातिस्मरण आदि आता है। जिनबिंब वह सब आता है। किसीको उसमें-से पुरुषार्थ शुरू हो जाता है। सब जीवकी योग्यता अनेक प्रकारकी होती है।
... दृढता होनेका, प्रतीत होनेका कारण बनता है। आत्मा ऐसे मुक्त है। अपना अस्तित्व सदा नित्य ही है। अनेक जन्म-मरण करते-करते जीव स्वयं शाश्वत नित्य ही है। शाश्वत अस्तित्व है। अनेक जन्म-मरण किये, अनेक-अनेक प्रसंग बने। कोई दुःखका, कोई अनुकूलताका, कोई प्रतिकूलताका। अनेक प्रसंग याद आनेपर उसे वैराग्यका कारण बनता है।
किसीको जातिस्मरण होनेपर, अनुमति माँगता है, अरे..! मैंने तो संसारमें ऐसा बहुत देखा है। ऐसा करके दीक्षा लेता है। कोई कहता है, ये देवलोककी ऋद्धि, ऐसा तो मैंने बहुत देखा है। ये संसार है। ऐसा नर्कका दुःख, ऐसा देवलोक सब देखकर वैराग्य होता है।
मुमुक्षुः- नर्कमें तो अनन्त दुःख हैं।
समाधानः- वह तो सुन न सके ऐसे हैं। जीव स्वयं अनन्त कालमें भोगकर