Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-५)

८८ होती या पूरे दिवस दरम्यान?

समाधानः- एकसाथ ऐसी निद्रा नहीं होती। पौन सैकण्ड निद्रा होती है। पीछली रयन। पूरे दिनमें तो उन्हें निद्रा होती नहीं। पीछली रयन पौन सैकण्ड यानी एकसाथ उतनी निद्रा नहीं होती। पौन सैकण्ड होते ही जागृत हो जाय।

मुमुक्षुः- पीछली रयनमें एक बार ऐसे नहीं, ज्यादा बार भी..

समाधानः- ऐसा अर्थ होना चाहिये। पौन सैकण्ड होते ही जागृत हो जाय। एकसाथ निद्राधीन हो जाय, ऐसा नहीं। पौन सैकण्डमें जागृत हो जाय।

समाधानः- .. पुण्यबन्ध होता है (तो) देवलोक होता है। उससे भवका अभाव तो नहीं होता। भवका अभाव तो शुद्धात्माको पहचानने-से होता है। शुभभाव बीचमें आते हैैं, देव-गुरु-शास्त्रके। परन्तु शुद्धात्मा तो विकल्पसे भिन्न है। भावना अच्छी न हो तो अच्छा नहीं होता है। तैयारी अपनेको करनी है। कहीं-से आया तो होगा और कहाँ जाना होगा, परन्तु भावना अच्छी करना। आत्माको पीछानने से अच्छा होता है।

मुमुक्षुः- चतुर्थ गुणस्थानमें कितने-कितने दिनोंमें आता रहता है? या लंबा टाईम खीँच लेते हैं?

समाधानः- उसका कोई नियम नहीं होता है। किसीको जल्दी होता है, किसीको देरसे भी होता है। लेकिन होता तो है। होता तो जरूर है। किसीको लंबा समय लगे उपयोग बाहर रहता हो तो। किसीको जल्दी होता है। जिसकी अंतरकी दशा जैसी हो वैसे होता है। चतुर्थ गुणस्थानमें स्वानुभूति तो होती है।

मुमुक्षुः- टाईम वाईस बारह महिना, तीन महिना..

समाधानः- टाईम बारह महिना ऐसा नहीं होता है, ऐसा नहीं होता है। इतना लंबा समय नहीं निकलता है। ऐसा लंबा समय नहीं होता है।

मुमुक्षुः- अन्दरकी क्या स्थिति होती है, जिसमें निर्विकल्प..

समाधानः- उसको भेदज्ञानकी धारा रहती है। क्षण-क्षणमें उपयोग बाहर जाय तो भी भेदज्ञानकी परिणति उसको रहती है। उसको विचार नहीं करना पडता है, सहज रहता है। पहले एकत्व हो जाय, बादमें विचार करे कि मैं जुदा हूँ, ऐसा विचार करके नहीं, वह तो सहज रहती है। बाहर उपयोग होवे, विकल्प होवे, तो भी उसका क्षण- क्षण भेदज्ञान रहता है।

मैं ज्ञायक हूँ, ऐसी परिणति सहज रहती है। ज्ञायककी आंशिक शान्ति उसको रहती है। एकत्व नहीं हो जाता है। ऐसी दशा, कोई अलग, जगतसे जुदी-न्यारी उसकी दृष्टिकी दिशा बदल जाती है।

मुमुक्षुः- जिस समय अन्दरमें निर्विकल्प ज्ञानका आनन्द होता है, उसकी क्या