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समाधानः- ... जाननेवाला है, ज्ञायक है। लेकिन विकल्प ही नहीं है, विकल्प रहित आत्मा है। वह तो आनन्दसे भरा, आनन्दसे भरा है। उसमें उलझनमें नहीं आ जाना। मैं तो जाननेवाला ज्ञायक आत्मा आनन्दस्वरूप हूँ। कोई विकल्प मेरे स्वरूपमें नहीं है। मैं तो सिद्ध भगवान जैसा आत्मा हूँ। सिद्ध भगवान जैसे आत्माके आनन्दमें विराजते हैं, वैसा मैं शक्तिरूप चैतन्य परमात्मा हूँ। कोई विकल्प मेरेमें नहीं है, विकल्प रहित आत्मा हूँ। जाननेवाला हूँ और मैं सुखसे भरा (हूँ)। बाहर कहीं सुख नहीं है।
अनन्त कालमें जन्म-मरण करते-करते मुश्किलसे मनुष्यभव मिलता है। और उस मनुष्यभवमें जीव जो करना चाहे वह कर सकता है। पुरुषार्थसे भरा है। उसे कोई नहीं रोकता है। उसे कर्म नहीं रोकते, कोई नहीं रोकता है। आत्मा आनन्दसागरसे भरा जाननेवाला है। उसमें कोई विकल्प ही नहीं है। मैं विकल्प रहित जाननेवाला आत्मा हूँ। मैं जाननेवाला हूँ।
गुरुदेवने कहा कि तू चैतन्य (है)। भगवान जैसा तेरा स्वरूप शक्तिसे है। अतः उलझनमें नहीं आ जाना। शान्ति रखकर परिणाम बदलते रहना कि मैं जाननेवाला हूँ। कोई विकल्प मेरा स्वरूप नहीं है। सुख और महिमा मेरेमें है। बाहर कहीं सुख और महिमा नहीं है। दुःखस्वरूप है।
अनन्त कालसे जीवने जन्म-मरण किये हैं। उसमें-से अनेक जातके नर्कके, निगोदके, देवलोकके अनन्त (भव) किये, सब किये। उसमें कभी ऐसे गुरु नहीं मिले हैं। इस पंचम कालमें ऐसे गुरु मिले। ऐसा मनुष्यभव मिला। गुरुदेवने कहा, तू शक्तिसे भगवान जैसा आत्मा है। मैं तो भगवान जैसा हूँ। कोई विकल्प मेरेमें नहीं है। मैं तो ज्ञायक हूँ। ऐसे आत्मामें शान्ति रखनी। उलझनमें नहीं आना। शान्ति रखनी। मैं जाननेवाला हूँ। अच्छा-अच्छा वांचन करना, भगवानके मन्दिरमें जाना। भगवान जैसा चैतन्यस्वरूप आत्मा हूँ, कोई विकल्प मेरेमें नहीं है। शान्ति रखनी।
मुमुक्षुः- ...
समाधानः- उसे अन्दर आत्मा-आत्माकी लगन लगे, कहीं चैन पडे नहीं। अन्दरसे आत्माकी, अंतरमें-से शान्ति न आवे, अंतरमें-से सुख प्रगट न हो, तबतक उसे कहीं