Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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एक ओर काल। जिस समय जो होना होगा वह होगा। तो कोई ऐसा कहे कि पुरुषार्थ जब होना होगा तब होगा, ऐसा उसका अर्थ हो जाय। उसका मेल करना। एक ओर पुरुषार्थ खडा रखना और एक स्वकालको खडा रखना, उसका मेल स्वयंको करना रहता है। पुरुषार्थ रखकर (बात है)। जिसे पुरुषार्थ करना हो उसे ऐसा ही होता है कि मैं जब पुरुषार्थ करुँगा तब होता है। जो होनेवाला होगा वह होगा, ऐसा लेने-से आत्मार्थीको वह कोई लाभका कारण नहीं होता।

मैं पुरुषार्थ करुँ, ऐसी ही काललब्धि होती है। मैं पुरुषार्थ करुँ, ऐसी ही काललब्धि होती है। और जिसे आत्माका नहीं करना है, उसे ऐसा हो कि जैसे होना होगा वह होगा। ऐसा है। आत्मार्थीको ऐसा ही होता है कि मैं पुरुषार्थ करुँ, ऐसा ही काल है। ऐसा काल हो ही क्युँ? मैं पुरुषार्थ करुँ, ऐसा ही मेरा काल हो। आत्मार्थीको हितकी ओर ऐसा ही आये कि पुरुषार्थपूर्वककी मेरी काललब्धि ऐसी है कि मेरे पुरुषार्थकी गति ही ऐसी हो, ऐसा ही मेरा काल है। दूसरा काल हो ही नहीं।

मुमुक्षुः- मुख्यता पुरुषार्थकी रखे।

समाधानः- हाँ। आत्मार्थीओंको पुरुषार्थकी मुख्यता रखकर काललब्धि लेनी। अकेली काललब्धि लेने-से उसे आत्माका हित होनेका कोई कारण नहीं रहता। अकेला काल कब लेना? कर्ताबुद्धि छोडनेमें। मैं परपदार्थको कर सकता नहीं। जैसे होना होगा, होगा। मैं उसका ज्ञाता हूँ। ज्ञायकताकी धाराके लिये, जैसे बनना होगा वैसा बनता है। ऐसे स्वयं कर्ताबुद्धि तोडकर कहता है, मैं ज्ञायक हूँ।

परन्तु जहाँ आत्म-हितकी बात आये, मेरे पुरुषार्थसे होता है। मेरे पुरुषार्थकी कचासके कारण मैं रुकता हूँ। मेरे पुरुषार्थका कारण है। इसलिये काल वैसा ही है। मैं पुरुषार्थ करुँ तो काल भी पलट जाय। पुरुषार्थ, कालका ऐसा अर्थ उसके हितकी ओर आता है।

मुमुक्षुः- आत्मार्थी पुरुषार्थको मुख्य रखकर देखता है।

समाधानः- पुरुषार्थको मुख्य रखकर कालको ग्रहण करता है, कालको..

मुमुक्षुः- कालका मेल करता है।

समाधानः- कालका मेल करता है।

मुमुक्षुः- पुरुषार्थका उपचार काल पर आये, परन्तु कालका उपचार पुरुषार्थ पर नहीं आता।

समाधानः- नहीं। कालका उपचार पुरुषार्थ पर नहीं आता। वह हितका कारण नहीं है।

प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो!