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समाधानः- हाँ, पर्यायदृष्टि हो तो इस तरह (होती है)। स्वभाव-ओर दृष्टि गयी तो सब निर्मल पर्यायें स्वतंत्र होती हैं। (द्रव्यका) आश्रय रहता है। स्वतंत्रता है, वह एक सत है, परन्तु उसे द्रव्यके आश्रयकी अपेक्षा है।
मुमुक्षुः- उसे रखकर बात है।
समाधानः- वह बात रखकर (बात) है। और वह शास्त्रमें भी आता है। कोई जगह पर्याय स्वतंत्र है ऐसा आये और कोई जगह द्रव्यका आश्रय है, ऐसा भी आता है, दोनों बात आती हैं।
मुमुक्षुः- वहाँ द्रव्यका आश्रय अर्थात यहाँ जैसे स्वभावका आश्रय है वैसे नहीं। द्रव्यका आश्रय माने द्रव्यका स्वयंका परिणमन है, उसे द्रव्यका आश्रय है, यह कहना है?
समाधानः- द्रव्यका जैसा परिणमन है, जिस ओर उसकी परिणति (झुकती है), जैसी अपनी दृष्टि है वैसी उसकी पर्याय है। .. स्वभाव-ओर दृष्टि गयी तो स्वभाव पर्याय (होती है)। सब गुणकी स्वतंत्र पर्याय (होती है)। ज्ञानकी ज्ञान, दर्शनकी दर्शन, चारित्रकी चारित्र, ऐसे स्वतंत्र पर्यायें होती हैं। एक द्रव्यके आश्रयसे है।
मुमुक्षुः- उन सबका आधारभूत द्रव्य एक ही है।
समाधानः- आधारभूत द्रव्य है।
मुमुक्षुः- ऐसा वस्तुका स्वरूप है, तो स्वतंत्रपने तू कर सकता है, वह दोनों बात कैसे? पर्यायके उसके स्वकालमें होती है। और दूसरी ओर ऐसा कहना है कि तू स्वतंत्रपने पर्यायका कर्ता है।
समाधानः- पर्यायका स्वतंत्रपने तू कर्ता है और वह स्वकालमें होती है। उसमें द्रव्यका आश्रय और उसकी स्वतंत्रता, दोनों बताते हैं। उसकी स्वतंत्रता कोई अपेक्षासे स्वतंत्रता भी है और कोई अपेक्षासे उसे द्रव्यका आश्रय भी है। ऐसे दोनों बात बताते हैं। उसमें किस प्रकार उसकी अपेक्षा समझनी वह अपने हाथकी बात है। कोई अपेक्षासे पर्यायको स्वतंत्र भी कहनेमें आती है कि पर्यायका स्वकाल स्वतंत्र है। और उसे द्रव्यका आश्रय भी है। दोनों अपेक्षाओंका मेल करना अपने हाथकी बात है। निश्चय वस्तु स्वभाव है और व्यवहार है। निश्चय-व्यहारकी सन्धि कैसे करनी, वह अपने हाथकी बात है।
मुमुक्षुः- अपने हाथकी बात..
समाधानः- स्वयंको मेल करना है।
मुमुक्षुः- अज्ञानी कैसे मेल करे।
समाधानः- उसका मेल स्वयंको करना है। स्वकाल और पुरुषार्थ दोनोंका स्वयंको मेल करना है। क्योंकि दोनों सामने-सामने विरोध आता है। एक ओर पुरुषार्थ और