यह भूमि पुरुषार्थकी प्रेरणा करती हो। गुरुदेव यहाँ विचरे हैं।
मुमुक्षुः- आपका प्रताप जयवन्त वर्तता है।
समाधानः- .. मुनिदशाकी तो क्या बात करनी!
मुमुक्षुः- आपने तो साक्षात भगवाने जैसे ही हों।
मुमुक्षुः- आज समस्त मुमुक्षु समाज पूज्य गुरुदेवकी जन्म जयंति मनानेको एकत्रित हुआ है। पूज्य गुरुदेवका हम सभी पर अत्यंत उपकार है। सबको अंतरंगमें पूज्य गुरुदेवकी बहुत महिमा है। आपके श्रीमुखसे पूज्य गुरुदेवकी महिमा बहुत ही सुनी है। परन्तु हमें तृप्ति होती नहीं। जब-जब कोई प्रसंग आये, तब हमारी भावनाकी दृढताके लिये आपके पास आते हैं और गुरुदेवकी महिमा अत्यंत दृढ करते हैं।
समाधानः- क्या प्रश्न है?
मुमुक्षुः- गुरुदेवके विषयमें कुछ कहीये।
समाधानः- गुरुदेवकी महिमा क्या करनी? महिमा तो जितनी करे उतनी कम है। गुरुदेवकी महिमा क्या करें? उनकी वाणी अपूर्व, उनका आत्मा अपूर्व था। वे तो भरतक्षेत्रमें जन्मे और मुमुक्षुओंके महाभाग्य कि उनकी वाणी सबको मिली। उनका आत्मा कोई अलग और भवका अभाव होनेका मार्ग उन्होंने बताया।
आत्मा अपूर्व है, आत्मा कोई अपूर्व वस्तु है, बाहरसे धर्म नहीं होता है, अंतर दृष्टि करने-से धर्म होता है। ऐसा भेदज्ञानका, स्वानुभूतिका गुरुदेवने मार्ग बताया। उनके उपकारका क्या वर्णन करना? वह तो वाणीसे कह सके ऐसा नहीं है। वह तो सहज जो आये वह आये।
मुमुक्षुः- स्वाध्याय मन्दिरमें इस बार आये, पूज्य गुरुदेवके जीवन-दर्शनके फोटो देखकर, मानों गुरुदेवका पूरा जीवन प्रत्यक्ष होता हो, ऐसा लगा। और आपने जिस तरह सब फोटोका आयोजन किया है, उसके भाव जाननेकी हमें भावना है। तो सब चित्र चेतनवंत बन जायेंगे।
समाधानः- गुरुदेवका जीवन तो गुरुदेव बचपनसे वहाँ कैसे पढे, पढते थे तो भी उनको बचपनसे आत्माकी लगन थी। जगतसे उन्हें वैराग्य था। संसारसे वैराग्य था। आत्माका स्वरूप कैसे प्राप्त हो? जगतमें कुछ नया करना ऐसी भावना थी। पढने जाते थे तो भी, यह पढाई मुझे अच्छी नहीं लगती है। जिस पढाईमेंं कुछ समझना नहीं आता है, जहाँ आत्माका कुछ नहीं आता है, वैसा मुझे कुछ पढना नहीं है। ऐसा उनका वैराग्य था।
कोई वैरागी-त्यागी दिखे तो वहाँ दौड जाते थे। वैराग्यकी धुन थी। वैसे भजन सुने तो भजनकी धुन लगती। सत्य समझनेकी उन्हें अन्दरसे पीपासा था। गुरुदेवके जीवनमें