Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-५)

१०० तो अनेक प्रसंग बने होते हैं। अनेक जातके उनके जीवनमें (प्रसंग हुए हैं), उसे तो क्या कहें?

गुरुदेव अपूर्व ही थे। बचपनसे उन्हें वैराग्यकी धुन थी। वहाँ पालेजमें पढते (थे)। वहाँ पालेजमें उन्हें दुकानमें रस नहीं था। शास्त्र पढने बैठते तो एक ओर शास्त्र ही पढते रहते थे। उन्हें दुकानमें रस नहीं आता था। संसार छोडकर दीक्षा लेनी (ऐसा भाव था)। उन्हें वैराग्यकी धुन थी। नाटक देखने जाय तो नाटकमें एक काव्य बनाया था। "शिवरमणी रमनार तू, तू ही देवनो देव'। वह पूरा काव्य बनाया था। उसमें- से दो पक्तियाँ बच गयी। ऐसी वैराग्यकी धुन उन्हें थी। दीक्षा लेनेके लिये (निकले)। यह संसार छोड देना है, इस संसारमें कुछ नहीं है।

गुरुकी खोज करनेके लिये कुछ मारवाडी साधुओंको मिले। उसमें-से हीराजी महाराज उन्हें ठीक लगे तो उनके पास दीक्षा ली। दीक्षित अवस्थामें संप्रदायमें कितने ही साल आत्माकी ही बातें उन्होंने की है। उनके प्रवचनोंमें आत्माकी बातें ही आती थी। शास्त्र लेकर बैठते थे तो आत्माकी ही बातें करते थे।

उसमेंसे सत्य स्वरूप अन्दरसे सत प्रगट हुआ और फिर परिवर्तन किया। परिवर्तन हीराभाईके बंगलेमें किया। वहाँ तीन साल हुए, फिर स्वाध्याय मन्दिरमें (निवास किया)। हीराभाईके बंगलेमें शास्त्रका अभ्यास और ज्ञान-ध्यानमें लीन रहते थे। फिर यहाँ स्वाध्याय मन्दिरमें पधारे। वह तो सबने देखा है।

वहाँ भी वे शास्त्र स्वाध्याय, ज्ञान-ध्यानमें रहते थे। कितने साल। कितना विहार किया है, उस जीवनको चित्रित करने बैठे तो पार आये ऐसा नहीं है। यहाँ सौराष्ट्र, गुजरात, मुंबई और चारों ओर वाणीका धोध बरसाया दिया है। श्रुतका धोध (बहाया)। शास्त्र, तो थे कहीं शास्त्र? शास्त्रोंके भण्डार (खोल दिये)। उनके प्रतापसे इतने शास्त्र प्रकाशित हुए। सब शास्त्रके भण्डार खुल गये, गुरुदेवके प्रतापसे।

उतने जिन मन्दिर इस ओर नहीं थे। जिन मन्दिर उनके प्रतापसे, पंच कल्याणक उनके प्रतापसे, सब जिन मन्दिर उनके प्रतापसे कितने हुए। और यात्रा करके पूरे हिन्दुस्तानमें चारों ओर वाणीकी अपूर्व वर्षा की। पूरी जीवनी करने बैठे तो पार न आए उतना है। सम्मेदशिखर, पावापूरी, राजगृही, दक्षिणमें उतनी यात्रा की। लोगोंने गुरुदेवका स्वागत किया और गुरुदेवने वाणीकी वर्षा भी उतनी ही की। देश-परदेशमें उनकी वाणीका प्रकाश चारों ओर फैल गया।

पूर्व भवसे पधारे। राजकुमार थे। सीमंधर भगवानकी वाणी और कुन्दकुन्दाचार्यकी वाणीको ग्रहण किया और चारों ओर वाणीका धोधा बरसा दिया। उस कारण चारों हरियाली (छा गयी)। सब लोग जागृत हो गये कि एक आत्मामें ही धर्म है, बाहर