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कहीं नहीं है। ऐसी आत्माकी रुचि गुरुदेवके प्रतापसे प्रगट हुयी। जगतमें उनका ही सब प्रताप वर्तता है।
मुमुक्षुः- अपने अन्दर धोधका जो दिखाव दिया है, वह बहुत सुन्दर दिखता है।
समाधानः- धोध, वाणीका धोध बरस गया। कोई अपूर्व धोध! ऐसी वाणीकी वर्षा करनेवाले भरतक्षेत्रमें अभी कोई इतने सालोंमें था नहीं, उन्होंने ऐसा धोध बरसाया।
मुमुक्षुः- हरियाली छा गयी।
समाधानः- हाँ, हरियाली छा गयी।
मुमुक्षुः- नेमिनाथ भगवानके बाद सौराष्ट्रकी भूमिमें गिने तो गुरुदेवके निमित्तसे ही तत्त्वका प्रचार (हुआ)।
समाधानः- तत्त्वका प्रचार गुरुदेवके प्रतापसे ही हुआ है। इस तरह समाजमें वाणीका धोध बरसानेवाले इस कालमें, गुरुदेव इतने वषामें गुरुदेवका जन्म हुआ, भरतका भाग्य। दूसरे तो कितने ही प्रसंग उनके जीवनमें बने। गुरुदेवकी उपस्थितिमें ये सब धवल शास्त्र, कितने शास्त्र, हजारों शास्त्र बाहर आये हैं। समयसार आदि तो कितने ही प्रकाशित हुए। अध्यात्मके सब शास्त्र उनके प्रतापसे बाहर आये हैं। उतने जिन मन्दिर (बने), सब उनके प्रतापसे।
इस ओर कोई कुछ जानता नहीं था। मन्दिर या अध्यात्मकी बात कोई जानता नहीं था। उस ओर सब क्रियामें पडे थे। उन सबकी दृष्टि अध्यात्मकी ओर करवानेवाले गुरुदेव ही है।
मुमुक्षुः- तुज पादथी स्पर्शाई एवी धूलीने पण धन्य छे। सोनगढकी भूमिका माहात्म्य तो लोगोंको था, परन्तु स्वाध्याय मन्दिरमें जगह-जगह गुरुदेवके चरणकमल देखनेसे भूमि गौण हो गयी और लक्ष्य चरण पर चला गया। और उसमें अभेदभावसे गुरुदेव ही मुख्य हो गये। क्या चरण और धूलिका सुन्दर मेल है! इतने सुन्दर चरण बने हैं सब कि देखते ही मानों साक्षात गुरुदेव हों, ऐसा स्मरण होता है। और ऐसा लगता है कि इस बारकी जन्म जयंति महोत्सवकी आपकी तैयारी, आपकी भावना देखते हुए, सामूहिक रूपसे पूरे समाजको ऐसी भावना होती है, सबके हृदयमें ऐसा होता है कि गुरुदेव यहाँ जरूर दर्शन देने पधारेंगे।
समाधानः- सब कुदरती गुरुदेवके प्रभावना योगसे ऐसे विचार आये और यह सब हो गया है। वह सब करनेवाले कारीगर आदि मिल गये।
मुमुक्षुः- कल रात्रिमें कितना सुन्दर बोले, करने जाते हैं कुछ और गुरुदेवका प्रताप कैसा है, चरणमें-से कलशका भाव कल रात्रिको बहुत अच्छा प्रकारसे भाव आया।