Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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प्रज्ञाछैनीसे स्वयंको भिन्न करना और स्वानुभूति कैसे प्रगट हो, उसका अभ्यास करना। उसे अभ्यास करना रहता है।

उसके लिये उसकी जिज्ञासा, उसकी लगन, उसकी महिमा, चैतन्यकी ही महिमा, जहाँ प्रगट नहीं हुआ है, वहाँ बाहर शुभभावनामें देव-गुरु-शास्त्रकी महिमा और अंतरमें चैतन्यकी महिमा। वह चैतन्य कैसे पहचानमें आये? गुरुदेवने जो मार्ग बताया, उस मार्गको ग्रहण करके स्वयं अंतरसे नक्की करके अपने पुरुषार्थसे आगे बढना है।

मुमुक्षुः- चैतन्यकी महिमाके साथ देव-गुरु-शास्त्रकी महिमा आती है।

समाधानः- उसे साथमें होती ही है। जिसे चैतन्यकी महिमा आये कि मेरा चैतन्यस्वरूप ऐसा है, उसे देव-गुरु-शास्त्रकी महिमा आये बिना रहती ही नहीं। जिनेन्द्र देवने पूर्ण स्वरूप प्रगट किया, महिमावंत देव हैैं। गुरु साधना कर रहे हैं और गुरुने वह प्रगट किया है और विशेष साधना कर रहे हैं। और शास्त्र सब बताते हैं। उनकी महिमा उसे आये बिना नहीं रहती। जिसे अपना प्रेम है उसे, जिन्होंने प्रगट किया उसकी महिमा आये बिना नहीं रहती। जो मार्ग बताये और जो गुरु अपूर्वरूपसे मार्ग बताया है, उनकी महिमा आये बिना नहीं रहती।

मुमुक्षुः- माताजी! कोई कार्य निष्फल नहीं होता। पूज्य गुरुदेवश्रीसे ४५ साल जो उपदेश मिला, आपकी भी उपस्थिति थी, इसलिये हमारा ऐसा मानना है कि बहुत जीवोंका कार्य हो गया होगा। आपका ज्ञान अति स्पष्ट है।

समाधानः- हो गया होगा अर्थात बहुत जीवोंको रुचि तो हुयी है। अन्दर भेदज्ञान करके अन्दर सहज दशा प्रगट करनी, वह अलग बात है। रुचि बहुत जीवोंको हुयी हो। जो क्रियामें धर्म मानते थे, एकत्वबुद्धि, शुभभावमें धर्म मानते थे, उससे पुण्यबन्ध होता है, धर्म नहीं होता। शुभभावमें धर्म मानते थे, थोडा कुछ किया, थोडा पढ लिया, थोडा विचार किया तो बहुत कर लिया, ऐसी मान्यता थी। उन सब मान्यता परसे रुचि छूटकर बहुत जीवोंको चैतन्यकी रुचि गुरुदेवके उपदेश द्वारा (हुयी है)। गुरुदेवके प्रतापसे ऐसी रुचि उनके निमित्तसे प्रगट हुयी है। वह बात सच्ची है। रुचि बहुत जीवोंको प्रगट हुयी है।

मुमुक्षुः- आत्मदर्शन नहीं हुआ हो और ऐसी रुचि प्रगट हुयी हो, वह कितने अंशमें कार्यकारी होती है?

समाधानः- वह रुचि उग्र हो तो जल्दी हो और रुचिकी मन्दता हो तो देर लगे। यथार्थ रुचि, अंतरमें-से लगन बारंबार (लगे), उसे कहीं चैन न पडे, ऐसी लगन हो तो शीघ्र हो। और ऐसी लगन उग्र न हो तो उसे देर लगे।

मुमुक्षुः- ...