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अनुपम तत्त्व है, ऐसा विश्वास नहीं बैठता है। और भीतरमें स्थूल-स्थूल करके, मैंने सबकुछ कर लिया, ऐसा मान लेता है।
शुभभावमें भीतरसे रुचि रह जाती है। थोडा-थोडा करके, त्याग करके, ऐसा करके, शास्त्रका अध्ययन करके, ऐसा करके सब मान लेता है कि मैंने सबकुछ कर लिया है। भीतरमें ऐसी एकत्वबुद्धि रह जाती है। शुभभावके साथ एकत्वबुद्धि रह जाती है। मैं न्यारा तत्त्व हूँ, ऐसी परिणति प्रगट नहीं होती है, इसलिये रुक जाता है।
मुमुक्षुः- शुभभावके एकत्वका कोई सरल दृष्टान्त आता है कि किस प्रकारसे?
समाधानः- शुभभाव मैं हूँ और शुभभाव मेरा स्वरूप है। उससे मैं भिन्न-न्यारा तत्त्व हूँ, मैं ज्ञायकतत्त्व हूँ, ये शुभभाव मेरा स्वरूप नहीं है, ऐसी भीतरमें परिणति न्यारी होनी चाहिये वह नहीं होती है। शुभभाव बीचमें आता है, उससे पुण्यबन्ध होता है। परन्तु शुभभाव मेरा स्वरूप नहीं है। ऐसी यथार्थ प्रतीति भीतरसे होनी चाहिये, वह नहीं होती है। भीतरमें उसकी रुचि रह जाती है। गहराईमें।
मुमुक्षुः- ये जो तत्त्वचिंतनकी जो धारा होती है, वह अकेला शुभभाव है या उसमें किसी प्रकारकी...?
समाधानः- श्रुतचिंतनकी धारा...?
मुमुक्षुः- तत्त्व चिंतनकी जो धारा होती है, इसमें अटकते हैं, इसमें कहीं मीठास लगती है?
समाधानः- कहीं-कही रुक जाता है। कोई श्रुतचिंतवनमें, भीतरमें उसकी महिमा आ जाती है, भीतरमें कहीं-कहीं रुक जाता है। कोई त्याग कर लिया तो मैंने कुछ कर लिया, श्रुतका चिंतवन किया तो मैंने कुछ कर लिया। श्रुतके चिंतवनमें भी शुभभाव मिश्रित है। शुभभाव मिश्रित है। वह आत्माका मूल स्वरूप तो नहीं है। वह क्षयोपशमभाव है। इसलिये उसमें रुक जाना वही भूल है। उसमें कुछ सर्वस्व नहीं है। क्षयोपशमभाव आत्माका सर्वस्व नहीं है। एक ज्ञायकतत्त्व अनादिअनन्त है, वह आत्माका स्वरूप है। उसकी अधूरी पर्याय है वह आत्माका मूल स्वरूप नहीं है। उसमें श्रुतका चिंतवन करके रुक जाना कि मैंने कुछ कर लिया, वह उसमें भी रुक जाता है।
मुमुक्षुः- .. कैसे .. उसके लिये आप कुछ लोगोंको...
समाधानः- स्वभावधर्म आत्माका है। आत्माके स्वभावको पहचाने। धर्म ही आत्मा है, उसका स्वभाव पहचाने तो उसकी धर्मस्वरूप पर्याय प्रगट होती है। उसको पीछानो। जो स्वभाव आत्मा है, उसको पीछाने और उसकी परिणति प्रगट करे। उसकी श्रद्धा करे, उसमें परिणति प्रगट करे तो आत्माका धर्म प्रगट होता है। उसकी प्रतीत कर ली और उसका भेदज्ञान करना। नहीं होवे तबतक उसका अभ्यास करना। श्रुतका चिंतवन