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समाधानः- अंतरसे तो हूँफ नहीं लगती है, परन्तु उसकी बुद्धिसे ऐसा लगे कि मैं शुद्ध हूँ। अंतरसे, अन्दर वेदन होकर जो हूँफ आनी चाहिये ऐसी नहीं लगती। परन्तु उसने ऐसा नक्की किया कि मैं शुद्ध हूँ और मार्ग यही है, इसी मार्ग पर जाना है, भेदज्ञान प्रगट करना है, मार्ग यह है, दूसरा कोई मार्ग नहीं है, बाहर कहीं जाना नहीं है, सब अंतरमें है, इस कारणसे हूँफलगे। मार्गका निर्णय हुआ है, इसलिये। परन्तु अंतरकी स्वानुभूति होकर अंतर ज्ञायककी धारा (होती है), ऐसी हूँफ उसे नहीं है। ... दृष्टिके बलके कारण, परस्पर सब गुण इस प्रकार सहकारी हैं। सबका विषय अलग है, परन्तु अन्दर सहकारीरूपसे कार्य करते हैं।
मुमुक्षुः- एक प्रश्नका चारों पहलू-से आप बहुत सुन्दर (स्पष्ट करते हो)।
मुमुक्षुः- जिज्ञासु जीव किस साधनसे आगे बढे?
समाधानः- निर्णय करे कि मैं यह चैतन्य ही हूँ, मैं अनादिअनन्त शुद्ध स्वरूप हूँ। ये विभावस्वभाव मेरा नहीं है। इस तरह स्वभावको ग्रहण करनेका प्रयत्न करे कि यह स्वभाव मेरा है, यह विभाव है। उसका भेदज्ञान करनेका प्रयत्न करे। स्वभावको ग्रहण करनेका प्रयत्न करे। नक्की करे कि मैं यह चैतन्य ही हूँ। ऐसा बुद्धिसे नक्की करे फिर उसे भिन्न करनेका प्रयत्न करे। उसके लिये उसकी जिज्ञासा, चैतन्यकी महिमा करे। वह सब करे। अंतरकी लगन लगाये, भेदज्ञान कैसे हो? स्वभाव-विभाव कैसे भिन्न हो? उसका साधन। बुद्धिसे नक्की करके उसका अभ्यास करे।
बुद्धिसे ऐसा निर्णय करने पर उसे सहज प्रगट होनेका पुरुषार्थ उत्पन्न हो तो उसे यथार्थ पुरुषार्थ उत्पन्न होनेका कोई प्रकार होता है। मार्ग तो यही है, स्वयंको ही निर्णय करना है। पहले बुद्धिसे नक्की करे कि यह ज्ञानस्वभाव मैं हूँ, ऐसा शास्त्रमें आता है। ऐसा प्रतीतसे नक्की करे, फिर प्रगट करनेका प्रयत्न करे। मति और श्रुतसे निर्णय करे कि यह ज्ञानस्वभाव सो मैं हूँ, अन्य नहीं हूँ। फिर उसकी प्रगट प्रसिद्धि कैसे हो, उसका बारंबार प्रयास करे।
उसे शुभभावनामें देव-गुरु-शास्त्र और अंतरमें मैं शुद्धात्मा हूँ, उसका बारंबार अभ्यास करता रहे। शुद्धात्माका। अन्दर जाकर देखे, अन्दर प्रवेश करके देखे कि मैं शुद्ध (हूँ)। प्रवेश करके तो देख नहीं सकता है, यथार्थ प्रगट नहीं हुआ है इसलिये बुद्धिसे नक्की करे।
उसमें आता है न कि भूतार्थ दृष्टिसे देखे, अन्दर प्रवेश करके नक्की करे, उसके समीप जाकर नक्की करे कि भूतार्थदृष्टिसे मैं यह शुद्ध हूँ। अभूतार्थसे सब यथार्थ है, और भूतार्थदृष्टि आत्मा भूतार्थ है। शुद्धात्मा अनादिअनन्त है, उसके समीप जाकर अन्दर प्रवेश करे। प्रवेश कर नहीं सकता है, बुद्धिसे नक्की करे।
मुमुक्षुः- वही उसका पुरुषार्थ है।