Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-५)

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मुमुक्षुः- वर्तमानमें तो भगवानकी साक्षात वाणी नहीं है, आचायाके आगम हैं, फिर भी श्रीमदजीने तो ऐसा कहा कि प्रत्यक्ष गुुरु, प्रत्यक्ष सत्पुरुषकी मुख्यता इतनी है कि परोक्ष जिन उपकार भी उसके आगे गौण है, तो उसमें उतना क्या रहस्य है?

समाधानः- भगवानने क्या कहा है, उसका रहस्य जानना, वह तो प्रत्यक्ष गुरु हो वही जान सकते हैं। और उनकी वाणीमें जो आता है उसे सीधा ग्रहण करनेमें आता है, वह अलग ही ग्रहण करनेमें आता है। सीधा शास्त्र लेकर बैठे तो उसमें- से स्वयं कुछ (नहीं समझ पाता)। गुरुदेव पधारे और इतनी वाणी निकली तो सबको समझने मिला। सीधा शास्त्र लेकर पहले कोई बैठता था, तो उसमेंसे कोई उसका अर्थ नहीं समझता था।

श्रीमदके शब्दोंका रहस्य गुरुदेवने खोला कि वे क्या कहते हैं? समयसार शास्त्र लेकर पहले बैठते थे, किसीके हाथमें आया, तो उसमें भी कोई समझता नहीं था। शास्त्रोंमें-से सीधा रहस्य खोलना बहुत मुश्किल है।

उसमें प्रत्यक्ष सदगुरु जो बताये, क्योंकि उन्हें अंतर आत्मा प्रगट हुआ है, उसमेंसे बताये और उनकी जो वाणी आये और जो असर हो (वह अलग होती है)। वे चैतन्य हैं, चैतन्यको चैतन्यकी असर हो वह कोई अलग ही होती है।

मुमुक्षुः- चैतन्यको चैतन्यकी असरका रहस्य है इसमें?

समाधानः- हाँ, वह रहस्य है। चैतन्य कोई चमत्कारी वाणी गुरुदेवकी थी। गुरुदेवका तो अनुपम उपकार है। उनकी वाणी अनुपम। उनको तो अन्दर शुद्धात्माकी शुद्ध पर्यायें प्रगट हुई थी। उनकी शुद्ध पर्यायें, उसमें उनकी ज्ञान विरक्ति आदि जो अन्दरमें छा गयी थी, वह बाहर उनकी मुद्रामें छाया था। उनकी वाणीमें वह था।

उनका द्रव्य अलौकिक! मंगलमय सब मंगलता करनेवाले और दिव्य एवं अलौकिक द्रव्य था उनका। उन्हें अन्दर श्रुतज्ञानके दीपक, चैतन्यरत्नाकरको स्पर्शित होकर श्रुतज्ञानके दीपक प्रकाशित हुए थे। (ऐसा) श्रुतज्ञान, वह सातिशय वाणी, सातिशय श्रुतज्ञान, सातिशय वाणी चैतन्यदेवका चमत्कार बता रही थी। वह सबको असर करता था।

गुरुदेवका तो अनुपम उपकार है। उसका वर्णन क्या कहें? इस आत्माकी प्रत्येक पर्यायमें उपकार हो तो गुरुदेवका ही है। सब पर्यायमें। गुरुदेव तो निस्पृह, नीडरतासे जो स्पष्ट मार्ग था वैसा प्रकाशित किया। अंतरमें जो था, अन्दर जो स्वानुभूतिकी दशा और अंतर आत्मरत्नको प्रगट करके, स्वानुभूति कैसे प्रगट हो, वह सबको बताया। लाखों जीवोंको। मुक्तिका मार्ग चारों ओर-से प्रकाशित किया। उनके उपकारको क्या वर्णन हो? उनकी सातिशय वाणी, उनकी सेवा और उनकी महिमा हृदयमें रहे, बस! वही करना है।

प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो!