અંદરથી વિચાર કરતાં લાગે છે કે આ યોગ્ય છે, અયોગ્ય છે પણ સંસારિક કામમાં જતાં અસ્ત થઈ જાય છે તે અંગે શું? 0 Play अंदरथी विचार करतां लागे छे के आ योग्य छे, अयोग्य छे पण संसारिक काममां जतां अस्त थई जाय छे ते अंगे शुं? 0 Play
.....આત્માનો અનુભવ થયો નથી તો પછી આત્માની લગની કેવી રીતે લાગે ? 0:35 Play .....आत्मानो अनुभव थयो नथी तो पछी आत्मानी लगनी केवी रीते लागे ? 0:35 Play
આત્મપ્રાપ્તિકા બલવાન કારણ ‘યોગ્યતા’ કૈસી હોની ચાહિયે ? 3:00 Play आत्मप्राप्तिका बलवान कारण ‘योग्यता’ कैसी होनी चाहिये ? 3:00 Play
માતાજી! વચનામૃતમેં આતા હૈ, ‘બંધ સમય જીવ ચેતીયે ઉદય સમય ક્યા ઉચાટ’ ઉસકા ભાવ ક્યા હૈ ? 4:15 Play माताजी! वचनामृतमें आता है, ‘बंध समय जीव चेतीये उदय समय क्या उचाट’ उसका भाव क्या है ? 4:15 Play
માતાજી! પૂજ્ય ગુરુદેવશ્રી કહતે થે કિ અપની શુદ્ધ પર્યાય ભી પરદ્રવ્ય હૈ, હેય હૈ, લેકિન વહ દશા હમેં પ્રગટ તો હુઈ નહીં હૈ તો ઉસે હેય કૈસે સ્વીકાર કરેં? 5:20 Play माताजी! पूज्य गुरुदेवश्री कहते थे कि अपनी शुद्ध पर्याय भी परद्रव्य है, हेय है, लेकिन वह दशा हमें प्रगट तो हुई नहीं है तो उसे हेय कैसे स्वीकार करें? 5:20 Play
રાગકી પર્યાય પરદ્રવ્ય કૈસૈ હૈ? 6:30 Play रागकी पर्याय परद्रव्य कैसै है? 6:30 Play
વર્તમાન જ્ઞાનપર્યાય વહ મતિજ્ઞાનકી હૈ વહ લક્ષણસે આત્માકી પ્રસિદ્ધિ હો જાયેગી? 7:25 Play वर्तमान ज्ञानपर्याय वह मतिज्ञानकी है वह लक्षणसे आत्माकी प्रसिद्धि हो जायेगी? 7:25 Play
પૂજ્ય ગુરુદેવશ્રી કહતે થે કિ વાસ્તવમેં પરદ્રવ્યકો આત્મા જાનતા નહીં ઉસકા ક્યા ભાવ હૈ? 8:25 Play पूज्य गुरुदेवश्री कहते थे कि वास्तवमें परद्रव्यको आत्मा जानता नहीं उसका क्या भाव है? 8:25 Play
જૈસે શ્રદ્ધા ઔર ચારિત્ર ગુણમેં વિપરીતતા અનાદિસે ચલ રહી હૈ વૈસે જ્ઞાનકી પર્યાયમેં ભી વિપરીતતા ચલ રહી હૈ ક્યા? 10:15 Play जैसे श्रद्धा और चारित्र गुणमें विपरीतता अनादिसे चल रही है वैसे ज्ञानकी पर्यायमें भी विपरीतता चल रही है क्या? 10:15 Play
વચનામૃતમેં આતા હૈ કિ ‘ચૈતન્યકે પરિણામકે સાથ કુદરત બંધી હુઈ હૈ વૈસા વસ્તુકા સ્વભાવ હૈ’ વહ કૈસૈ હૈ? 11:00 Play वचनामृतमें आता है कि ‘चैतन्यके परिणामके साथ कुदरत बंधी हुई है वैसा वस्तुका स्वभाव है’ वह कैसै है? 11:00 Play
‘જાગતા જીવ વિધ્યમાન હૈ, વહ કહાઁ જાય?’ જાગતા જીવ યાને ક્યા? 12:20 Play ‘जागता जीव विध्यमान है, वह कहाँ जाय?’ जागता जीव याने क्या? 12:20 Play
‘પુરુષાર્થ કરનેકી કલ સૂઝ જાય તો માર્ગકી મુશ્કિલ ટલ જાય’ સમઝાઈયે . 13:05 Play ‘पुरुषार्थ करनेकी कल सूझ जाय तो मार्गकी मुश्किल टल जाय’ समझाईये । 13:05 Play
નિહાલચંદજીકે વચનામૃતમેં આતા હૈ કિ જ્ઞાની ગુરુકો પહિચાને તો અપની આત્માકી પહિચાન હોવે’ તો જ્ઞાની ગુરુકો કૈસે પહિચાને? 14:05 Play निहालचंदजीके वचनामृतमें आता है कि ज्ञानी गुरुको पहिचाने तो अपनी आत्माकी पहिचान होवे’ तो ज्ञानी गुरुको कैसे पहिचाने? 14:05 Play
શરીરાદિસે એકત્વબુદ્ધિ વર્ત રહી હૈ વહ કૈસે તૂટે? 15:05 Play शरीरादिसे एकत्वबुद्धि वर्त रही है वह कैसे तूटे? 15:05 Play
સમ્યગ્દર્શનકે વિષયભૂત આત્મા કૈસા હૈ? 15:30 Play सम्यग्दर्शनके विषयभूत आत्मा कैसा है? 15:30 Play
કભી ઐસા લગતા હૈ કિ આત્મા પરપ્રકાશક હૈ હિ નહીં, કભી ઐસા લગતા હૈ કિ આત્મા સ્વ-પરપ્રકાશક હૈ ઉસકા ખુલાસા કિજીયે . 16:30 Play कभी ऐसा लगता है कि आत्मा परप्रकाशक है हि नहीं, कभी ऐसा लगता है कि आत्मा स्व-परप्रकाशक है उसका खुलासा किजीये । 16:30 Play
વારંવાર અભ્યાસ કરવો તે વિષે..... 16:50 Play वारंवार अभ्यास करवो ते विषे..... 16:50 Play
मुमुक्षुः- अन्दरसे विचार करने पर बहुत बार ऐसा लगता है कि ... फिर सांसारिककाममें लगने पर अस्त हो जाता है..
समाधानः- स्वयंकी कचास है। अन्दर लगन ऐसी होनी चाहिये कि कहीं चैनपडे नहीं। अंतरमें-से मुझे जो प्रगट करना है वह होता नहीं है। बाहर कहीं सुख न लगे। सुख अंतरके स्वभावमें है। उसे खटक रहनी चाहिये, दृष्टि कहीं थँभे नहीं, कहीं चैन पडे नहीं। ऐसी लगन होनी चाहिये।
मुमुक्षुः- ... अनुभव नहीं हुआ है, उसकी लगन कैसे लगे? आत्माके आनन्दकीलगन लगे, आत्मिक आनन्दका अनुभव नहीं हुआ है। प्रत्यक्ष देखे, सोनगढ देखा तो मैं कह सकता हूँ कि सोनगढमें इतनी-इतनी चीज अच्छी है। सोनगढ देखा नहीं है। वैसे आत्माका अनुभव नहीं हुआ है, अनजानी वस्तुकी लगन कैसे लगानी?
समाधानः- उसका अनुभव नहीं हुआ है। उसके लक्षणसे नक्की करे। कहीं सुखनहीं है, ऐसा तो उसे अंतरसे लगना चाहिये कि सुख कहीं नहीं है। तो सुख कहाँ है? सुख अंतर आत्मामें अंतरमें होना चाहिये। उसका विचार करके लक्षणसे नक्की करे। महापुरुष कहते हैं, उसे स्वयं विचारसे नक्की करे कि अंतरमें ही सुख है, बाहर कहीं नहीं है।
सुख है ही नहीं, ऐसा तो विश्वास आना चाहिये। अंतरमें-से विचार करके उसेलगे कि अंतरमें देखे तो सुख कहीं नहीं है। वह स्वयं नक्की कर सके ऐसा है। सुख अन्दर आत्मामें भरा है। अपने विचारसे नक्की हो ऐसा है। उसके लक्षण परसे। अनुभव नहीं है तो भी।
मुमुक्षुः- पहले लक्षणसे विशेष स्पष्टता होगी, अनुभवसे, पहले तो विकल्पमें हीनिर्णय होगा, बादमें..
समाधानः- पहले तो विकल्पसे निर्णय करे। बादमें अनुभव होता है।
मुमुक्षुः- निवृत्ति नहीं ली है, उस सम्बन्धित आपका कोई आदेश? लगन तो आप कहते ही हो।
समाधानः- सबकी रुचि। निवृत्तस्वरूप आत्मा है। गुरुदेवने आत्माको बहुत बताया