Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi). Track: 215.

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अमृत वाणी (भाग-५)

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ट्रेक-२१५ (audio) (View topics)

मुमुक्षुः- अन्दरसे विचार करने पर बहुत बार ऐसा लगता है कि ... फिर सांसारिक काममें लगने पर अस्त हो जाता है..

समाधानः- स्वयंकी कचास है। अन्दर लगन ऐसी होनी चाहिये कि कहीं चैन पडे नहीं। अंतरमें-से मुझे जो प्रगट करना है वह होता नहीं है। बाहर कहीं सुख न लगे। सुख अंतरके स्वभावमें है। उसे खटक रहनी चाहिये, दृष्टि कहीं थँभे नहीं, कहीं चैन पडे नहीं। ऐसी लगन होनी चाहिये।

मुमुक्षुः- ... अनुभव नहीं हुआ है, उसकी लगन कैसे लगे? आत्माके आनन्दकी लगन लगे, आत्मिक आनन्दका अनुभव नहीं हुआ है। प्रत्यक्ष देखे, सोनगढ देखा तो मैं कह सकता हूँ कि सोनगढमें इतनी-इतनी चीज अच्छी है। सोनगढ देखा नहीं है। वैसे आत्माका अनुभव नहीं हुआ है, अनजानी वस्तुकी लगन कैसे लगानी?

समाधानः- उसका अनुभव नहीं हुआ है। उसके लक्षणसे नक्की करे। कहीं सुख नहीं है, ऐसा तो उसे अंतरसे लगना चाहिये कि सुख कहीं नहीं है। तो सुख कहाँ है? सुख अंतर आत्मामें अंतरमें होना चाहिये। उसका विचार करके लक्षणसे नक्की करे। महापुरुष कहते हैं, उसे स्वयं विचारसे नक्की करे कि अंतरमें ही सुख है, बाहर कहीं नहीं है।

सुख है ही नहीं, ऐसा तो विश्वास आना चाहिये। अंतरमें-से विचार करके उसे लगे कि अंतरमें देखे तो सुख कहीं नहीं है। वह स्वयं नक्की कर सके ऐसा है। सुख अन्दर आत्मामें भरा है। अपने विचारसे नक्की हो ऐसा है। उसके लक्षण परसे। अनुभव नहीं है तो भी।

मुमुक्षुः- पहले लक्षणसे विशेष स्पष्टता होगी, अनुभवसे, पहले तो विकल्पमें ही निर्णय होगा, बादमें..

समाधानः- पहले तो विकल्पसे निर्णय करे। बादमें अनुभव होता है।

मुमुक्षुः- निवृत्ति नहीं ली है, उस सम्बन्धित आपका कोई आदेश? लगन तो आप कहते ही हो।

समाधानः- सबकी रुचि। निवृत्तस्वरूप आत्मा है। गुरुदेवने आत्माको बहुत बताया