Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-५)

१७४ उसका अर्थ नहीं है। जाननेका उसका स्वभाव ही नहीं है, ऐसा नहीं है। जानता है। ज्ञान अनन्तको नहीं जाने तो उस ज्ञानकी महिमा (क्या)? ज्ञान अनन्तको जानता है। सबको जानता है। ज्ञानमें कुछ गुप्त नहीं रहता है। सब ज्ञेयोंको जानता है, अनन्त ज्ञेयोंको जानता है, ज्ञान तो। इसलिये स्वपरप्रकाशक ज्ञानका स्वभाव है। उसका उपयोग परमें नहीं जाता है, अपनेमें परिणमन करता है।

मुमुक्षुः- स्वपरप्रकाशक शक्ति तो एक है। समाधानः- हाँ, स्वपरप्रकाशक शक्ति एक है। मुमुक्षुः- एक ही है? समाधानः- हाँ, एक ही है। स्वरूपमें परिणमन करता है। स्वको जानता है, परको जानता है। सब एकसाथ जानता है। उसमें क्रम नहीं पडता है। स्व और पर दोनोंको एकसाथ जानता है। ऐसा ज्ञानका स्वभाव है। एकसाथ जानता है। जाननेका स्वभावका नाश नहीं होता है।

प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो!