પ્રવચનસાર ગાથા ૧૧૪ મેં આતા હૈ કિ ‘‘પરકો જાનના સર્વથા બંધ કર–પર્યાયાર્થિક ચક્ષુકો સર્વથા બંધ કરનેસે દ્રવ્યાર્થિક ચક્ષુ ઉઘડતા હૈ’’, ઉસ બારેમેં બતાઈયે. 0 Play प्रवचनसार गाथा ૧૧४ में आता है कि ‘‘परको जानना सर्वथा बंध कर–पर्यायार्थिक चक्षुको सर्वथा बंध करनेसे द्रव्यार्थिक चक्षु उघडता है’’, उस बारेमें बताईये. 0 Play
ભગવાન ઐસા કહતે હૈ કિ હમ અપનેકો દેખતે હૈ, તુમ ભી અપનેકો દેખો, પરકો મત દેખો... 2:00 Play भगवान ऐसा कहते है कि हम अपनेको देखते है, तुम भी अपनेको देखो, परको मत देखो... 2:00 Play
(સમયસાર ગાથા-૩૧) જો ‘ઇન્દ્રિય જિનિતા’ ઉસમેં ઇન્દ્રિયજ્ઞાનકો–ભાવઇન્દ્રિયકો જીતના વહ કૈસે કરે? ઉસકા ખુલાસા બતાઈયે . 3:25 Play (समयसार गाथा-३૧) जो ‘इन्द्रिय जिनिता’ उसमें इन्द्रियज्ञानको–भावइन्द्रियको जीतना वह कैसे करे? उसका खुलासा बताईये । 3:25 Play
ક્યા પરકો જાનનેકી આકુલતા નહીં કરે, વૈસે હી પરકો ન જાનનેકી આકુલતા નહીં કરેં? 5:50 Play क्या परको जाननेकी आकुलता नहीं करे, वैसे ही परको न जाननेकी आकुलता नहीं करें? 5:50 Play
(प्रश्नका सार) दूसरे भी कहते हैं कि हम भी पूज्य गुरुदेवश्रीका माल देते है, पर यहाँ आपसे प्रश्न किया तो पता चला कि बात तो अलग ही है, औऱ कोई विशेष बात हो तो हमें बताईये तो उससे हम बचकर रहे પૂજ્ય બહેનશ્રીના સપનામાં પૂજ્ય ગુરુદેવશ્રી અહીંયા પધાર્યા તે વિષે....(બે ત્રણ વખત રીપીટ છે) 9:55 Play (प्रश्नका सार) दूसरे भी कहते हैं कि हम भी पूज्य गुरुदेवश्रीका माल देते है, पर यहाँ आपसे प्रश्न किया तो पता चला कि बात तो अलग ही है, औऱ कोई विशेष बात हो तो हमें बताईये तो उससे हम बचकर रहे पूज्य बहेनश्रीना सपनामां पूज्य गुरुदेवश्री अहींया पधार्या ते विषे....(बे त्रण वखत रीपीट छे) 9:55 Play
‘સહજાત્મસ્વરૂપ સર્વજ્ઞદેવ પરમગુરુ’ તે વિષે... 13:45 Play ‘सहजात्मस्वरूप सर्वज्ञदेव परमगुरु’ ते विषे... 13:45 Play
સત્પુરુષના યોગે પ્રથમ ભૂમિકામાં મુમુક્ષુને શું લાભ થાય ? 14:20 Play सत्पुरुषना योगे प्रथम भूमिकामां मुमुक्षुने शुं लाभ थाय ? 14:20 Play
જાણવું તે માત્ર નહીં પણ અનંત પદાર્થોને એકસાથે જાણે એવા સામર્થ્યવાળો હું છું તેના ઉપર દ્રષ્ટિ જાય તો કાર્ય થાય તે વિષે..... 17:30 Play जाणवुं ते मात्र नहीं पण अनंत पदार्थोने एकसाथे जाणे एवा सामर्थ्यवाळो हुं छुं तेना उपर द्रष्टि जाय तो कार्य थाय ते विषे..... 17:30 Play
मुमुक्षुः- ११४ गाथा प्रवचनसारमें आता है, परको जानना सर्वथा बन्द कर दिया।ऐसी प्रक्रिया बताते हैं। पर्यायचक्षुको सर्वथा बन्द कर दे, तब द्रव्यचक्षु उघडता है।
समाधानः- सर्वथा बन्द कर दे उसका अर्थ है कि उसका उपयोग परमें जाताहै न? उस उपयोगको स्वमें लाओ। छद्मस्थका उपयोग बाहरमें जाता है तो क्रम-क्रमसे जानता है। इसलिये तू उपयोग अपनी ओर ला। सर्वथा बन्द करनेका अर्थ ऐसा है कि उपयोग अपनेमें ला। राग आता है, उसमें एकत्वबुद्धि होती है इसलिये राग मत कर, ऐसा कहना है। जाननेका बन्द कर, उसका अर्थ राग बन्द कर। राग टाल दे, ऐसा उसका अर्थ है। तू स्वभावमें लीन हो जा। बादमें केवलज्ञान प्रगट होता है तो वह सबको जानता है। वीतरागता प्रगट कर दे, ऐसा उसका अर्थ है। तू जाननेका स्वभावका नाश कर दे ऐसा अर्थ नहीं है। तेरे स्वभावका नाश कर दे ऐसा अर्थ नहीं है। राग टाल दे और उपयोग स्वरूपमें ला, ऐसा।
छद्मस्थ तो एक बार जाने तो एक तरफ जान सकता है। इसलिये स्व-ओर उपयोगआवे तो पर-ओर उपयोग जाता नहीं है। इसलिये परको जाननेका सर्वथा बन्द कर दे। एक तरफ जाने, उपयोग तो एक तरफ जाता है। परिणति सब ओर रहती है। ज्ञानका उपयोग तो फिरता रहता है। स्वानुभूतिमें उपयोग जाय तो परको जानना छूट जाता है। और स्वानुभूतिमें लीन हो जाय तो पर-ओर उपयोग जाता नहीं है। आत्माका वेदन स्वानुभूतिमें होता है। इसलिये परको जाननेका स्वभाव नाश नहीं होता है।
मुमुक्षुः- एक प्रश्न था कि भगवान ऐसा कहते हैं कि हम अपनेको देखते हैं,तुम भी अपनेको देखो, परको मत देखो।
समाधानः- भगवान क्या कहते हैं?
मुमुक्षुः- भगवान कहते हैं, हम अपनेको देखते हैं, तुम भी अपनेको देखो, परको मत देखो।
समाधानः- परको मत देखो अर्थात पर-ओर उपयोग, परका राग मत करो। अनादिकालसे उपयोग बाहर भ्रमण कर रहा है। अपना अवलोकन करो, उसमें सब आ जाता है। अपनेको अवलोकन (करे)। जो स्वभाव है वह सब उघड जाता है। पर जाननेकी